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कविविकलबेअकलभिक्षुशीलसागर

@32cgrxhTuvd9Fog

साहित्यिक गतिविधियां

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calendar_today28-05-2019 10:14:14

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वह तक्षशिाला जैसे विश्व विद्यालयका कैसे घुस पैठिया रहा ?मै जब संस्था प्रधान था तब ही उसकी 'चाणक्य नीति' अद्योपान्त पढ़ ली थी।
इसलिये जागो बहुजन जागो।
अस्तु।
विकल-बेअकल
भरतपुर
राजस्थानी।
E.X.
R.E.S.

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'पेरियार स्वामी' को ब्राह्मण व साँप
मिलने और पहले किससे निबटने की तरकीब चाणक्य के से ही ली है ।वह चालाक (चपल) कालाकलूटा कैसेसफलहुआ ऐय्यार(गुप्तचर) विषकन्या रखना कोई बामन से सीखे।

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एक धूर्त बामन चन्दू उर्फ चन्द्रगुप्त से मिल कर किस तरह मगध साम्राज्य को तहस नहस कराता है किसी से छुपा नहीं है ?
किस ?तरह सिकन्दर से लेकर कन्धार तक के राजाओं का वह 'गद्दार ' मिल कर मगध साम्राज्य का पतन कराने में सफल हुुआ।

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लेकिन चाण्डाल चौकड़ी का साम ,दाम, दण्ड ,भेद कूटिनीतिज्ञ इन ब्राह्मण के रक्त में व (D.N.A.)में भरी हुई है कि आगे चलकर शिक्षा का 'तुलनात्मक अध्ययन'में हमने ब्राह्मणकालीन शिक्षा को L.T. में सन 1975 तक पढ़ा है।

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'दुनिया का सबसे धूर्त चाणक्य'
बन्धुओ!श्रमण सभ्यताअन्तिम राजा मगथ नरेश घनानन्द थे जो आज के पिछड़े वर्ग O.B.C. नाई थे लेकिन इतिहास हमेशा उनकी गौरव गाथा (गुणगान) करता है जो सत्ता में हो ।

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मानव - मानव से प्यार करे अब।
समताममताका समभावभरे सब।
मन के भेद सभी मिट जायैं ।
सब आपस में मेल बढा़यै ।
जग से विकलता दूर भगादो।।
बहुजन ऐसी हुंकार भरो..........
रचयिता
विकल-बेअकल
भरतपुर
राजस्थानी।

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मानव-मानव क्यों दूर हुआ है।
निज मस्ती में चूर हुआ है ।
मानव - मानव में इतनी दूरी ।
बढ़ी पलायन की मजबूरी ।
संवल देकर पींग झुलादो ।।
बहुजन ऐसी हुंकार भरो.......

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कविता
'बहुजन ऐसी हुंकार भरो
जग में उथल-पुथल हो जाये।'
जग में मानव तृष्त हुआ है।
भौतिकता में मस्त हुआ है।
बिल्कुलअलगवथलगहुआहै।
कुण्ठाओं से ग्रस्त हुआ है।
जंगल-मंगंल अहो!रचा दो।।
बहुजन ऐसी हुंकार भरो.......

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एक अदद
ठाकुर
चाहिये!!!
और उस
ठाकुर
वर को
आरक्षण'
भरपूर लाभ
देय होगा।
कवि
विकल-बेअकल
भरतपुर
राजस्थानी।

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पर >
आदान
रह गयी <
ठीक
नौ माह बाद
एक बच्ची को
जन्म दिया
अब वह
पढ़-लिख कर
जवान हो गयी
है

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उसको
एक अदद
ठाकुर
चाहिये!!!
और उस
ठाकुर
वर को
आरक्षण'
भरपूर लाभ
देय होगा।
कवि
विकल-बेअकल
भरतपुर

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आदान
रह गयी <
ठीक
नौ माह बाद
एक बच्ची को
जन्म दिया
अब वह
पढ़-लिख कर
जवान हो गयी
है

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कविता
' विज्ञापन '
एक विज्ञापन
पढ़ कर
मैं चौंका
कैसा ?जमाना
आया
अब

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अब हम ही सोचें कि हम कहाँ है?
अस्तु।
विकल-बेअकल
भरतपुर
राजस्थानी।

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जहां जाओ ऊँची दुकान फीका पकवान ही मिलेगा। शहद मन की तीनों तृष्णाऐं हैं लालच मधु है ।अब तो 'मेरी पडौसिन खाय दही
मोपै कैसे जाय सही ।'उक्ति चरितार्थ करती है । कथित भिक्षु भी मँहगी लग्जरी गाड़ियों सफर करने लग गये ।
कुछ तो..............।

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अज्ञान सूखा झेरे नुमा कुँआ,वृक्ष की शाखा (डालियां)विभिन्न पंथ जैसे सनातन ब्राह्मण, अर्वाचीन हिन्दू , मुस्लिम, धन-धन सतगुर तेरा आसरा , साकार विश्व हरि आदि। कथित फिरका परस्ती तंग नजरी है ।

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अब हम जरा गौर फरमायैं तो लकडहारे हम खुद ही हैं साँप मनुवाद (R. S.S.) है चूहे दिन रात हैं यही काल रूपी काला साँप बन्चऑफ थाट्टस बुक व चार वेद,छ: शास्त्र ,पुराण उपनिषद,रामायण कल्पित गीता उस विशाल वृक्ष केअगणित पत्ते हैं।

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उसने नीचे झाँक कर देखा तो नीचे एक सूखा कुँआ है,जसमें कृष्ण व्याल (नाग) फुंकार रहा है काले और सफेद दो चूहे उस वृक्ष की जड़ों को काट रहे है, ऊपर वृक्ष की डाल पर मधुमक्खी का छत्ता है जिससे शहद टपक रहा है ।

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एक था लकड़ाहारा वह सुनसान जंगल (विपिन) में लकड़ी काटने,जाता ।एक पेड़ पर चढ़ कर लकड़ी काटने लगा,अक्समात उसके हाथ से कुल्हाड़ी छूट गयी ।

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