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वाणी:- गुरु बिन प्रेत जन्म सब पावै।वर्ष सहंस्र गरभ सो रहावै
सरलार्थ:- जो साधक गुरु से दीक्षा न लेकर अपने आप साधना करते हैं, वे प्रेत योनि को प्राप्त होते हैं तथा हजारों वर्षों तक जन्म-मरण के चक्र में कष्ट उठाते रहते हैं। जिस कारण से सहंस्त्र (हजार) वर्ष तक गर्भ का कष्ट उठाते हैं।

वाणी:- गुरु बिन प्रेत जन्म सब पावै।वर्ष सहंस्र गरभ सो रहावै सरलार्थ:- जो साधक गुरु से दीक्षा न लेकर अपने आप साधना करते हैं, वे प्रेत योनि को प्राप्त होते हैं तथा हजारों वर्षों तक जन्म-मरण के चक्र में कष्ट उठाते रहते हैं। जिस कारण से सहंस्त्र (हजार) वर्ष तक गर्भ का कष्ट उठाते हैं।
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वाणी:- तीर्थ व्रत अरू सब पूजा। गुरु बिन दाता और न दूजा।।
नौ नाथ चौरासी सिद्धा। गुरु के चरण सेवे गोविन्दा।।

वाणी:- तीर्थ व्रत अरू सब पूजा। गुरु बिन दाता और न दूजा।। नौ नाथ चौरासी सिद्धा। गुरु के चरण सेवे गोविन्दा।।
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:- गुरुकी शरणा लीजै भाई। जाते जीव नरक नहीं जाई।।
गुरु कृपा कटे यम फांसी। विलम्ब ने होय मिले अविनाशी।।

#वाणी:- गुरुकी शरणा लीजै भाई। जाते जीव नरक नहीं जाई।। गुरु कृपा कटे यम फांसी। विलम्ब ने होय मिले अविनाशी।।
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वाणी:- गुरु सेवा में फल सर्बस आवै।
गुरु विमुख नर पार न पावै।।
गुरु वचन निश्चय कर मानै।
पूरे गुरु की सेवा ठानै।।

वाणी:- गुरु सेवा में फल सर्बस आवै। गुरु विमुख नर पार न पावै।। गुरु वचन निश्चय कर मानै। पूरे गुरु की सेवा ठानै।।
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:- गेही भक्ति की करहीं। आदि नाम निज हृदय धरहीं।।
गुरु चरणन से ध्यान लगावै। अंत कपट गुरु से ना लावै।।

#वाणी:- गेही भक्ति #सतगुरु की करहीं। आदि नाम निज हृदय धरहीं।। गुरु चरणन से ध्यान लगावै। अंत कपट गुरु से ना लावै।।
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पुरूष नाद सुत षोडश आही। नाद पुत्र शिष्य शब्द जो लैही।।

पुरूष नाद सुत षोडश आही। नाद पुत्र शिष्य शब्द जो लैही।।
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वाणी:- मीनी खोज हनोज हरदम, उलट पन्थ की बाट है।
इला पिंगुला सुषमन खोजो, चल हंसा औघट घाट है।।

वाणी:- मीनी खोज हनोज हरदम, उलट पन्थ की बाट है। इला पिंगुला सुषमन खोजो, चल हंसा औघट घाट है।।
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वाणी:- सहंस कमल दल भी आप साहिब, ज्यूं फूलन मध्य गन्ध है।
पूर रह्या जगदीश जोगी, सत् समरथ निर्बन्ध है।।
सरलार्थ:- सहंस्र कमल दल का स्थान सिर के ऊपरी भाग में कुछ पीछे की ओर है जहाँ पर कुछ साधक बालों की चोटी रखते हैं। वैसे भी बाल छोटे करवाने पर वहाँ एक भिन्न निशान-सा नजर आता है।

वाणी:- सहंस कमल दल भी आप साहिब, ज्यूं फूलन मध्य गन्ध है। पूर रह्या जगदीश जोगी, सत् समरथ निर्बन्ध है।। सरलार्थ:- सहंस्र कमल दल का स्थान सिर के ऊपरी भाग में कुछ पीछे की ओर है जहाँ पर कुछ साधक बालों की चोटी रखते हैं। वैसे भी बाल छोटे करवाने पर वहाँ एक भिन्न निशान-सा नजर आता है।
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वाणी:- हृदय कमल महादेव देवं, सती पार्वती संग है।
सोहं जाप जपंत हंसा, ज्ञान जोग भल रंग है।।

वाणी:- हृदय कमल महादेव देवं, सती पार्वती संग है। सोहं जाप जपंत हंसा, ज्ञान जोग भल रंग है।।
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वाणी:- मूल चक्र गणेश बासा, रक्त वर्ण जहां जानिये।
किलियं जाप कुलीन तज सब, शब्द हमारा मानिये।।
सरलार्थ:- मानव शरीर में एक रीढ़ की हड्डी (Spine) है जिसे Back Bone भी कहते हैं। गुदा के पास इसका निचला सिरा है। इस रीढ़ की हड्डी के साथ शरीर की ओर गुदा से एक इन्च ऊपर मूल चक्र (कमल) है

वाणी:- मूल चक्र गणेश बासा, रक्त वर्ण जहां जानिये। किलियं जाप कुलीन तज सब, शब्द हमारा मानिये।। सरलार्थ:- मानव शरीर में एक रीढ़ की हड्डी (Spine) है जिसे Back Bone भी कहते हैं। गुदा के पास इसका निचला सिरा है। इस रीढ़ की हड्डी के साथ शरीर की ओर गुदा से एक इन्च ऊपर मूल चक्र (कमल) है
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कबीर, ज्ञानी रोगी अर्थार्थी जिज्ञासू ये चार।
सो सब ही हरि ध्यावते ज्ञानी उतरे पार।।

कबीर, ज्ञानी रोगी अर्थार्थी जिज्ञासू ये चार। सो सब ही हरि ध्यावते ज्ञानी उतरे पार।।
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कबीर, जब जप करि के थक गए, हरि यश गावे संत।
कै जिन धर्म पुराण पढ़े, ऐसो धर्म सिद्धांत।।
भावार्थ:- यदि भक्त जाप करते-करते थक जाए तो परमात्मा की महिमा की वाणी पढ़े, यदि याद है तो गाए या अपने धर्म की पुस्तकों को पढ़े, यह धार्मिक सिद्धांत है।

कबीर, जब जप करि के थक गए, हरि यश गावे संत। कै जिन धर्म पुराण पढ़े, ऐसो धर्म सिद्धांत।। भावार्थ:- यदि भक्त जाप करते-करते थक जाए तो परमात्मा की महिमा की वाणी पढ़े, यदि याद है तो गाए या अपने धर्म की पुस्तकों को पढ़े, यह धार्मिक सिद्धांत है।
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कबीर, इन्द्री तत्त्व प्रकृति से, आत्म जान पार।
जाप एक पल नहीं छूटै, टूट न पावै तार।।
भावार्थ:- आत्मा को पाँचों तत्त्वों से भिन्न जानै। शरीर आत्मा नहीं है। निरंतर सतनाम का जाप करे।

कबीर, इन्द्री तत्त्व प्रकृति से, आत्म जान पार। जाप एक पल नहीं छूटै, टूट न पावै तार।। भावार्थ:- आत्मा को पाँचों तत्त्वों से भिन्न जानै। शरीर आत्मा नहीं है। निरंतर सतनाम का जाप करे।
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कबीर, देखे जब यम दूतन को, इत उत जीव लुकाय।
महा भयंकर भेष लखी, भयभीत हो जाय।।
भावार्थ:- यम के दूतों का भयंकर रूप होता है। मृत्यु के समय यमदूत उसी धर्म व भक्तिहीन व्यक्ति को ही दिखाई देते हैं। उनको देखकर भय के मारे वह प्राणी शरीर में ही इधर-उधर छुपने की कोशिश करता है।

कबीर, देखे जब यम दूतन को, इत उत जीव लुकाय। महा भयंकर भेष लखी, भयभीत हो जाय।। भावार्थ:- यम के दूतों का भयंकर रूप होता है। मृत्यु के समय यमदूत उसी धर्म व भक्तिहीन व्यक्ति को ही दिखाई देते हैं। उनको देखकर भय के मारे वह प्राणी शरीर में ही इधर-उधर छुपने की कोशिश करता है।
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संत रामपाल जी महाराज के बोध दिवस और कबीर साहिब जी के निर्वाण दिवस पर 10 सतलोक आश्रमों में आप सभी परिवार सहित सादर आमंत्रित हैं।

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, खाट पड़ै तब झखई नयनन आवै नीर।
यतन तब कछु बनै नहीं, तनु व्याप मृत्यु पीर।।
भावार्थ:- वृद्ध होकर या रोगी होकर जब मानव चारपाई पर पड़ा होता है और आँखों में आँसू बह रहे होते हैं, उस समय कोई बचाव नहीं हो सकता, मृत्यु के समय होने वाली पीड़ा हो रही होती है।

#कबीर, खाट पड़ै तब झखई नयनन आवै नीर। यतन तब कछु बनै नहीं, तनु व्याप मृत्यु पीर।। भावार्थ:- वृद्ध होकर या रोगी होकर जब मानव चारपाई पर पड़ा होता है और आँखों में आँसू बह रहे होते हैं, उस समय कोई बचाव नहीं हो सकता, मृत्यु के समय होने वाली पीड़ा हो रही होती है।
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भक्त ब्यौहार कैसा हो?
निजधन के भागी जेते सगे बन्धु परिवार।
जैसा जाको भाग है दीजै धर्म सम्भार।।
भावार्थ: परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि संपत्ति के जो भी जितने भी भाग के कानूनी अधिकारी हैं, उनको पूरा-पूरा भाग देना चाहिए

भक्त ब्यौहार कैसा हो? निजधन के भागी जेते सगे बन्धु परिवार। जैसा जाको भाग है दीजै धर्म सम्भार।। भावार्थ: परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि संपत्ति के जो भी जितने भी भाग के कानूनी अधिकारी हैं, उनको पूरा-पूरा भाग देना चाहिए
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, गुरू मरा मत जानियो, वस्त्र त्यागा स्थूल।
सूक्ष्म देही गमन करि, खिला अमर वह फूल।।

#कबीर, गुरू मरा मत जानियो, वस्त्र त्यागा स्थूल। सूक्ष्म देही गमन करि, खिला अमर वह फूल।।
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