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इंडियास्पेंड आंकड़ों पर आधारित पत्रकारिता के माध्यम से देश में बेहतर शासन, पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने की पहल है।

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लखनऊ से लगभग 28 किलोमीटर दूर बाराबंकी शहर में रहने वाले मोहम्मद अकरम अंसारी एक मदरसा में आधुनिक व‍िषयों के टीचर हैं। लेकिन उन्‍हें काफी समय से वेतन नहीं म‍िला। केंद्र के बाद प्रदेश सरकार ने पैसा रोक दिया। अकरम अब मजदूरी कर परिवार चला रहे।
Full video- youtu.be/1R8oMEPjP5M?si…

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बांदा के ब्‍लॉक बढोकर खुर्द के गांव मोहनपुरवा में रहने वाले कल्‍लू प्रसाद साहू कहते हैं क‍ि नल तो लग गया है। लेकिन उसमें पानी नहीं आता। कुएं और हैंडपंप से ही पीने का पानी लेते हैं। Bhadohi Wallah और Manoj Kumar की र‍िपोर्ट buff.ly/3yAtQVF

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प्रत‍ि एक लाख जनसंख्‍या पर पंजीकृत कार्यरत कारखानों में काम करने वाले कर्मचारियों की संख्‍या 2011-12 में 94.22 थी जो 2017-18 में घटकर 90.62 पर आ गई। इस दौरान जिलेवार कारखानों की संख्‍या में भी ग‍िरावट आई। buff.ly/3yAtQVF

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ज‍िलेवार विकास संकेत 2021 की र‍िपोर्ट के अनुसार बुंदेलखंड में 2011-12 में प्रत‍ि एक लाख जनसंख्‍या पर औद्योगिक क्षेत्रों की संख्‍या 0.11 थी जो 2020-21 में घटकर 0.09 पर आ गई। buff.ly/3yAtQVF

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तमाम कवायदों के बावजूद बुंदेलखंड में में भी पानी और पलायन ही बड़ा मुद्दा है। नल तो लग गये हैं। लेकिन हर घर तक पानी पहुंचना बाकी है। रोजगार के लिए औद्योगिक इकाइयां भी अभी बन ही रही हैं। Bhadohi Wallah और Manoj Kumar की र‍िपोर्ट buff.ly/3yAtQVF

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उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड के अनुसार राज्य में चल रहे 7,442 पंजीकृत मदरसों में 21,000 से अधिक आधुनिक शिक्षक तैनात हैं। इनमें हर समुदाय के लोग हैं। लेकिन केंद्र और प्रदेश सरकार से म‍िलने वाला पैसा रुकने के बाद उन्‍हें मजदूरी करनी पड़ रही। buff.ly/3UMqMgC

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उत्तर प्रदेश के मदरसों में न‍ियुक्‍त आधुनिक व‍िषयों के अध्‍यापकों को प‍िछले कई वर्षों से केंद्र सरकार से म‍िलने वाला वेतन नहीं म‍िल रहा। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी पैसा रोक द‍िया है। ऐसे में ये टीचर मजदूरी करने को मजबूर हैं। @mithileshdhar की र‍िपोर्ट buff.ly/3UMqMgC

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प्रधानमंत्री जी का नारा था ‘एक हाथ में कुरान एक हाथ में लैपटॉप’ हमें लग रहा अब कटोरा हाथ में आ जाएगा। अभी हम ठेलिया चला रहे हैं। एक चक्कर का 20 रुपया मिलता है। पूरे दिन में 150 रुपए का काम हो जाता है- मोहम्मद अकरम अंसारी, मॉर्डन टीचर, मदरसा buff.ly/3UMqMgC

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लखनऊ से 58 किलोमीटर दूर बाराबंकी के सहादतगंज में रहने वाले मोहम्मद सूफियान अंसारी मदरसा में पढ़ाने वाले मॉर्डन टीचर हैं। लेकिन वे स‍िलाई करके अपना पर‍िवार पाल रहे। क्‍योंक‍ि उन्‍हें पढ़ाने के बदले म‍िलने वाला पैसा बंद हो चुका है। @mithileshdhar की र‍िपोर्ट buff.ly/3UMqMgC

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कैम्पा फंड का इस्तेमाल बाघ अभयारण्यों से विस्थापित आदिवासियों के पुनर्वास योजनाओं के लिए भी किया गया है। भारत का वन्यजीव संरक्षण वनवासियों पर कैसे प्रभाव डालता है, इस पर हमारी स्टोरी: buff.ly/4bhaTWK

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भले ही जनजातीय समुदाय को भारत के वन्यजीव अभयारण्यों से बाहर कर दिया गया है, लेकिन पर्यटन पर बढ़ते जोर के चलते जंगलों में निर्माण बढ़ा है और सामुदायिक स्थानों का अतिक्रमण हो रहा है। संरक्षण के विवादित भारतीय मॉडल पर हमारा लेख#ForestRights buff.ly/4bhaTWK

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‘स्वैच्छिक पलायन’ सुनने में काफी अच्छा लगता है लेकिन ये अक्सर तब होता है जब सालों के संघर्ष से थक चुके लोग दिए गए विकल्प को चुनने के लिए मजबूर हो जाते हैं। ऐसे ज्यादातर मामलों में आदिवासी समुदायों को नुकसान उठाना पड़ता है: Eleonora_Fanari buff.ly/4bhaTWK

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भारत में बाघों की आबादी तो तेजी से बढ़ी है, लेकिन इस प्रक्रिया में हजारों वनवासियों ने अपने घर खो दिए। भारत के संरक्षित क्षेत्रों में आदिवासी क्यों प्रभावित हो रहे हैं buff.ly/4bhaTWK

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लगभग 50 वर्षों में भारत के वन्यजीव अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों के कारण पांच लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। महाराष्ट्र और तमिलनाडु से हमारी रिपोर्ट: buff.ly/4bhaTWK

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1973 में प्रोजेक्ट टाइगर के लॉन्च के बाद से भारत में बाघों की संख्या में वृद्धि तो हुई है, लेकिन इसकी वजह से पलायन कर चुके वनवासी आज भी परेशान हैं। उनमें से बहुत से लोगों को न तो मूलभूत सुविधाएं मिल पाई हैं और न ही पूरा मुआवजा। Sushmita की रिपोर्ट buff.ly/4bhaTWK

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“जूनपुट में 6500 मत्स्यजीवी हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा एक मुद्दा है, लेकिन इसके नाम पर आप हमारी आजीविका नहीं छीन सकते हैं।” जूनपुट में मत्स्यजिवियों को क्यों अपनी आजीविका पर खतरा मंडराता नजर आ रहा है? पढ़े हमारी रिपोर्ट buff.ly/4aafx7w

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बिश्वजीत रॉय आरोप लगाते हैं कि केंद्र में शासन कर रही भाजपा और राज्य में शासन कर रही तृणमूल कांग्रेस के बीच इस मिसाइल लांचिंग सेंटर के प्रोजेक्ट को लेकर सहमति है और इसलिए वे कुछ नहीं बोल रहे हैं। मेदिनीपुर के मत्यजीवियों की आजीविका संकट पर हमारी रिपोर्ट buff.ly/4aafx7w

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सूखी मछली के कारोबार से जुड़े प्रदीप कहते हैं, “हमें अब तक यह नहीं पता है कि मिसाइल प्रक्षेपण से हमारी आजीविका को होने वाले नुकसान की भरपाई सरकार कैसे करेगी। इस बारे में न तो पश्चिम बंगाल सरकार ने कुछ बताया है और न ही केंद्र सरकार ने।” buff.ly/4aafx7w

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जूनपुट के मत्स्यजीवियों को यहां बनाए जा रहे मिसाइल लांच पैड की वजह से अपनी आजीविका पर खतरा मंडराता नजर आ रहा है। वे अपने कारोबार के भविष्य को लेकर खासे चिंतित हैं। राहुल सिंह की रिपोर्ट buff.ly/4aafx7w

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पश्चिम बंगाल के बायोडायवर्सिटी हेरिटेज साइट में मिसाइल लांच पैड का निर्माण मछुआरों और स्थानीय समुदाय के लिए क्यों चिंता की एक बड़ी वजह बना हुआ है? पढ़े हमारी रिपोर्ट buff.ly/4aafx7w

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