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Manvendra Kumar

@Manvend59913658

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calendar_today11-08-2017 11:24:34

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पहले पढ़ना लिखना
सीख लिया होता
इतना दोषारोपण
किया नहीं होता।
रूलाया कह के यही बात
रोते हो दिन रात,
इतने आँसू गिरा दिया
गिरा नहीं होता।
बह गये कितने कस्बे गाँव
इतना शहर बसा नहीं होता।
सब रहते मिल जुल
इतना भेद हुआ नहीं होता।

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राम राम है सकल भूमि
राम राम ही देश है
चाहे कोई बोली भाषा
हृदय एक,संदेश है।

चाल ढ़ाल में खान पान में
क्या पहनावा क्या भेष है
सब के आदि और अंत है
पानी आग गगन एक,न द्वेष है।

राह अलग है,पंथ विलग है
सुख दुख एक क्लेष है
सब के राम,सब में राम
राम राम ही देश है।

राम राम है सकल भूमि राम राम ही देश है चाहे कोई बोली भाषा हृदय एक,संदेश है। चाल ढ़ाल में खान पान में क्या पहनावा क्या भेष है सब के आदि और अंत है पानी आग गगन एक,न द्वेष है। राह अलग है,पंथ विलग है सुख दुख एक क्लेष है सब के राम,सब में राम राम राम ही देश है।
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जिस तरह से सब बात करता है
दिखता है सब हमशक्ल यारो।
जो भी वादा कर रहा है अभी
कल कहेगा वही,जुमला प्यारो।

उस पार की रौशनी दिखाता है
उधर कूड़ो की धधक है प्यारो।
जितनी घनेरी काली होगी रात
उस पर चमक बिखेरती है,तारों।

ये जो दीया अभी जलाया है
सब मिल उसे सम्हालो प्यारों।

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यहाँ खजाना जात है
यही तो असली बात है।

बाँट के तोड़ा ताना बाना
इस समाज पर आघात है।

उपर उपर इनमें झगड़ा
अंदर बैठे सब एक पात है।

बाहर निकला बोल रहा
हम ई,ई हमारा जात है।

वोट के खातिर बने बैंक
देखो,मैनेजर मुस्कात है।

अंधा बोल रहा औरों को अंधा
यहाँ काली अंधेरी ही रात है।

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यही मेरा नव वर्ष सही है
मजरी है आमों पर
फूला लता उद्दामो पर
हर ओर छाई हरियाली है
फसले कटने वाली है
लता तरू और विटप
तरूणाई में हर डाली है।
धरती पर लोट रही खुशी
चेहरे पर आयी लौट हँसी
सच में मेरा नव वर्ष यही है।

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मुड़ सकती है नदी,धार तोड़ना चाहिए
विष वृक्ष पर प्रहार होना चाहिए।

अपनी जड़ो को काट,आयु रहा न पेड़ का
बात आगे की है,अब तो जुड़ना चाहिए।

यहाँ की माटी में भेद उपजा कभी नहीं
व्याख्या मनमानी है,गुलामी टूटना चाहिए।

ध्वज पताका दशों दिशा लहड़ा रही
बयार इसकी कोने कोने पहुँचना चाहिए।

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दोहरा चरित्र!

वो कौन था
रौबिनहुड या माफिया डाॅन था?
सब के अपने अपने पैमाने हैं
इसके क्या मानक और माने है?
यहाँ का समाज विचित्र है
कहें तो यही दोहरा चरित्र है!

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हम रहे या मेरा बेटा रहे
हमारे परिवार से ही नेता रहे।

बाकी बन के रहे पिछलग्गू चाहे
उम्र भर मेरा झोला ढ़ोता रहे।

किसी का काट दे टिकट
पाँच साल चाहे रोता रहे।

हम जो चाहे रंग बदले
बोले तो,मेरा तोता रहे।

लोकतंत्र को ले चले शमशान
कुछ परिवार को,कब तक ढ़ोता रहे।

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जी भर खेलिए रंग इतनी मँहगी नहीं हुजूर
नकदी हो या उधार से,खाली हमने जरूर।

उतरेगा रंग पहचाने जाएंगे सभी
तय है जाना साथ तो जाएगा गुरूर।

आया पर्व हमेरा आप आए नहीं मेरे साथ
औरों की पर्व में जम के नाचे मारे हुजूर।

आज नहीं तो कल उतरेगा खाल सबका
असलियत से सामना होगा एक दिन जरूर।

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होली

लूट का मैदान है
फागून का महीना है
हरे फसल है खेत में
गदहे चर रहे हैं।

ऐसी भूख की पिसास है,कि
कितना भी खा ले भले
पेट उसके न भर रहें है।

आगे खड़ी वैशाख
पानी बिन मर रहें है।

लूट का मैदान गदहे
चर रहें है।

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अपना असली रंग छुपाने को
कई कई रंग चढ़ा लेते है,लोग

रहते हैं अंदर से कुछ और
दिखाई कुछ और देते है,लोग

कि,पपीहा अपने को बताता,मसीहा
मरीचिका में सब लूटा देते हैं,लोग।

उतरने लगता है जब भी अपना रंग
बदल ढ़ंग नये रंग में फिर आते है,लोग।

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होली से पहले रंग में भंग पड़ गया
पानी उतर गया संग क्या गया।

शुद्ध हृदय इतना तंग कब हो गया
जंग भ्रष्ट से,कब उस के संग हो गया।

उम्मीद चराग से,पेंदी तक रौशनी मिले
उसी से आकाश का काला रंग हो गया।

आती हुजूम होती सभा का मंचन
उससे पहले ही सदन भंग हो गया।

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रण अब सज चूका
चलो अब मैदान मे॔
शंखनाद पर न जगा
चेतना नहीं नादान में।

भविष्य क्षितिज में छुपा
रहना नहीं अंधकार में
सब है सत्ता लोलुप
सब है रत व्यापार में।

देशहित आगे सब फीका
जाति मजहब कूड़ेदान में
पहचानो उसे मिल सब
पहुँचे जो तीसरे पायदान में।

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अब बिगुल बज चूका
जो चाहे उतरे,मैदान में
झुठ खेले सच बोले
चाहे बदले पैतरे मत,दान में।

कुछ के हाथों का खेल है
पत्ते सब के बेमेल है
कुछ घराने बाकी दीवाने
मगर सब है अपने पयदान में।

कुछ को मिलेगी सत्ता
बाकी के लिए भत्ता
कुछ लोगो हेतु है रण
यही समझ नहीं नादान में।

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तुमने अपने बच्चों में भेद किया है
तुमने ही उसके दिल में छेद किया है।

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देख रहे है परदे पर
और चल रहा चित्र है
घट रही घटनाएँ जो
सब की सब विचित्र है।

है कथानक सामने
सब के सब सचित्र है।

सच में यही है रंग रूप
या सजे हुए विचित्र है
अपात्र जो बने पात्र
जैसे बुँद बुँद पवित्र है।

लिखा कहे,या रचा गया
स्पष्ट नहीं कुछ पर चित्र है।

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वो झुठ है कि यहाँ रहते हुए डर लगता है
खिलाफ बोलता है,इसी शहर में रहता है।

वो जो हर उम्मीद पर वार करता है
हमारी गिनती से जीत हार करता है।

गायब था जो,उसकी नजर एक एक पर है
कोई कटार,जो सीने के आर पार करता है।

उसका रूप न गुण कोई हमारे काम का
कैसा सामान,जो हमारा ही व्यापार करता है।

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किसी को कोई डर नहीं
सब निर्भीक रहे
सब का घर है
सब अपने घर में रहे।

देहरी लाँघने की जरूरत नहीं
रेख है उसका सम्मान करे।

खतरा किसी को नहीं
खतरे में न कुछ भी नहीं

यह गगन उन्मुक्त है
जो चाहे उड़ाने भरे
सब खेले जाते है यहाँ
लाल खेल न करे।

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एक पेड़ पर झर रहे थे पत्ते
दूसरे पर कोपल उठ खड़े हुए
कौन रहे उस डाल
इस डाल पर क्यों नहीं रहे।

अधर में लाली
माटी में हरियाली
काहे न पंछी
उस ओर उड़े।

जहाँ हो दाना
उस ओर है जाना
उस सूखे रेत पर
कौन रहे।

उगता सूरत
जग पूजता रख धीरज
अवसर है पावन
पीछे कौन रहे।

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अर्न्तआत्मा की आवाज को पहचानिए
झुक रहा पलरा झुकाव को जानिए।

भगदड़ मची,व्यर्थ उठ रहा शोर है
वो उधर गया,उसी क्षितिज पर भोर है।

इल्जाम खरीदार पर,कि बेचने वाले पर लगे
इस तरह सामान,क्यों ऐसे सौदे आने लगे।

आनेवाले समय के लिए हो रहा लिपिबद्ध है
बदल रहा है काल,बदलने हेतु प्रतिबद्ध है।

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