परनारी पैनी छुरी, बिरला बंचै कोये ना वह पेट संचारिये, जो सोना की होये।
अर्थ : दुसरो की नारी तेज धार वाली चाकू की तरह है। इस के वार से सायद ही कोई बच पाता है। उसे कभी अपने हृदय में स्थान मत दें-यदि वह सोने की तरह आकर्षक और सुन्दर ही क्यों न हो।
नारी सेती नेह, बुधि विवेक सभी हरै बृथा गबावै देह, कारज कोई ना सरै।
अर्थ : स्त्री से वासना रुपी प्रेम करने में बुद्धि और विवके का हरण होता है। शरीर भी बृथा बेकार होता है और जीवन के भलाई का कोई भी कार्य सफल नहीं होता है।
नारी निरखि ना देखिये, निरखि ना कीजिये दौर देखत ही ते बिस चढ़ै, मन आये कछु और।
अर्थ : नारी को कभी घूर कर मत देखो। देख कर भी उसके पीछे मत दौड़ो। उसे देखते ही बिष चढ़ने लगता है और मन में अनेक प्रकार के बिषय विकार गंदे विचार आने लगते है।
नारी नरक ना जानिये, सब सौतन की खान जामे हरिजन उपजै, सोयी रतन की खान।
अर्थ : नारी को नरक मत समझो। वह सभी संतों की खान है। उन्हीं के द्वारा भगवत पुरुषों कि उत्पत्ति होती है और वे ही रत्नों की खान है। प्रभु भक्तों को नारी ही जन्म देती है।
नारी कहुॅ की नाहरी, नख सिख से येह खाये जाल बुरा तो उबरै, भाग बुरा बहि जाये।
अर्थ : इन्हें नारी कहा जाय या शेरनी। यह सिर से पॅूछ तक खा जाती है। पानी में डूबने वाला बच सकता है पर बिषय भोग में डूबने वाला संसार सागर में बह जाता है।
नारी पुरुष सबही सुनो, येह सतगुरु की साखी बिस फल फले अनेक है, मति कोई देखो चाखी।
अर्थ : सतगुरु की शिक्षा को सभ्री स्त्री पुरुष सुनलो। बिषय वासना रुपी जहरीले फल को कभी नहीं चखना। ये बिषय वासाना रुपी जहरीले फल अनेका नेक है। इस से तुम बिरक्त रहो।
कामी कबहु ना हरि भजय, मिटय ना संशय सूल और गुनाह सब बखशी है, कामी दल ना मूल।
अर्थ : एक कामी पुरुष कभी भगवान का भजन नहीं करता हैं। उसके भ्रम एंव कष्ट का निवारन कभ्री नहीं होता हैै। अन्य लोगों के पाप को क्षमा किया जा सकता है पर लोभी को कभी मांफी नहीं दीजा सकती
कामिनि काली नागिनि, तीनो लोक मंझार राम सनेही उबरै, विषयी खाये झार।
अर्थ : एक औरत काली नागिन है जो तीनों लोकों में व्याप्त है। परंतु राम का प्रेमी व्यक्ति उसके काटने से बच जाता है। वह विषयी लोभी लोगों को खोज-खोज कर काटती है।