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Praveen Arora

@Praveen63591993

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calendar_today02-09-2020 07:05:30

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कबीर के दोहे(नारी)

पर नारी के राचनै, सीधा नरकै जाये
तिनको जम छारै नहि, कोटिन करै उपाये।

अर्थ :
परायी स्त्री से कभी प्रेम मत करो। वह तुम्हे सीधा नरक ले जायेगी।
उसे यम देवता भी नहीं छोड़ता है चाहे तुम करोड़ो उपाय करलो।

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कबीर के दोहे(नारी)

पर नारी पैनी छुरी, मति कौई करो प्रसंग
रावन के दश शीश गये, पर नारी के संग।

अर्थ :
दुसरो की स्त्री तेज धार वाली चाकू की तरह है। उसके साथ किसी प्रकार का संबंध नहीं रखो।
दुसरे के स्त्री के साथ के कारण ही रावण का दश सिर चला गया।

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कबीर के दोहे(नारी)

परनारी पैनी छुरी, बिरला बंचै कोये
ना वह पेट संचारिये, जो सोना की होये।

अर्थ :
दुसरो की नारी तेज धार वाली चाकू की तरह है। इस के वार से सायद ही
कोई बच पाता है। उसे कभी अपने हृदय में स्थान मत दें-यदि वह सोने की तरह आकर्षक और सुन्दर ही क्यों न हो।

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कबीर के दोहे(नारी)

नारी सेती नेह, बुधि विवेक सभी हरै
बृथा गबावै देह, कारज कोई ना सरै।

अर्थ :
स्त्री से वासना रुपी प्रेम करने में बुद्धि और विवके का हरण होता है। शरीर भी बृथा
बेकार होता है और जीवन के भलाई का कोई भी कार्य सफल नहीं होता है।

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कबीर के दोहे(नारी)

नारी मदन तलाबरी, भव सागर की पाल
नर मच्छा के कारने, जीवत मनरी जाल।

अर्थ :
नारी वासना का तालाव और इस भव सागर में डूबने से रक्षा हेतु पाल है।
यह नर रुपी मछली को फंसाने का जाल डाला गया

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कबीर के दोहे(नारी)

नारी निरखि ना देखिये, निरखि ना कीजिये दौर
देखत ही ते बिस चढ़ै, मन आये कछु और।

अर्थ :
नारी को कभी घूर कर मत देखो। देख कर भी उसके पीछे मत दौड़ो।
उसे देखते ही बिष चढ़ने लगता है और मन में अनेक प्रकार के बिषय विकार गंदे विचार
आने लगते है।

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कबीर के दोहे(नारी)

नारी निन्दा ना करो, नारी रतन की खान
नारी से नर होत है, ध्रुब प्रहलाद समान।

अर्थ :
नारी की निन्दा मत करो। नारी अनेक रत्नों की खान है।
नारी से ही पुरुष के उत्पत्ति होती है। घ्रुब और प्रहलाद भी किसी नारी की ही देन है।

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कबीर के दोहे(नारी)

नारी नरक ना जानिये, सब सौतन की खान
जामे हरिजन उपजै, सोयी रतन की खान।

अर्थ :
नारी को नरक मत समझो। वह सभी संतों की खान है। उन्हीं के द्वारा भगवत पुरुषों
कि उत्पत्ति होती है और वे ही रत्नों की खान है। प्रभु भक्तों को नारी ही जन्म देती है।

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कबीर के दोहे(नारी)

छोटी मोटी कामिनि, सब ही बिष की बेल
बैरी मारे दाव से, येह मारै हंसि खेल।

अर्थ :
स्त्री छोटी बड़ी सब जहर की लता है।
दुश्मन दाव चाल से मारता है पर स्त्री हंसी खेल से मार देती है।

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कबीर के दोहे(नारी)

केता बहाया बहि गया, केता बहि बहि जाये
एैसा भेद विचारि के, तु मति गोता खाये।

अर्थ :
कितने लोग इस भव सागर मे बह गये और अभी भी कितने बह रहे है।
इस रहस्य पर विचार करो। तुम इस बिषय वासना में डूबकी मत लगाओ।

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कबीर के दोहे(नारी)

नारी काली उजली, नेक बिमासी जोये
सभी डरे फंद मे, नीच लिये सब कोये।

अर्थ :
स्त्री काली गोरी भली बुरी जो भी हो सब वासना के फंदे में फांसती है और तब भी
एक नीच व्यक्ति हमेशा उसे अपने साथ कखता है।

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कबीर के दोहे(नारी)

नारी कहुॅ की नाहरी, नख सिख से येह खाये
जाल बुरा तो उबरै, भाग बुरा बहि जाये।

अर्थ :
इन्हें नारी कहा जाय या शेरनी। यह सिर से पॅूछ तक खा जाती है।
पानी में डूबने वाला बच सकता है पर बिषय भोग में डूबने वाला संसार सागर में बह जाता है।

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कबीर के दोहे(नारी)

नारी पुरुष सबही सुनो, येह सतगुरु की साखी
बिस फल फले अनेक है, मति कोई देखो चाखी।

अर्थ :
सतगुरु की शिक्षा को सभ्री स्त्री पुरुष सुनलो। बिषय वासना रुपी जहरीले फल को कभी नहीं चखना।
ये बिषय वासाना रुपी जहरीले फल अनेका नेक है। इस से तुम बिरक्त रहो।

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कबीर के दोहे(नारी)

गये रोये हंसि खेलि के, हरत सबौं के प्रान
कहै कबीर या घात को, समझै संत सुजान।

अर्थ :
गाकर,रोकर, हंसकर या खेल कर नारी सब का प्राण हर लेती है।
कबीर कहते है की इसका आघात या चोट केवल संत और ज्ञानी ही समझते है।

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कबीर के दोहे(नारी)

कामी कबहु ना हरि भजय, मिटय ना संशय सूल
और गुनाह सब बखशी है, कामी दल ना मूल।

अर्थ :
एक कामी पुरुष कभी भगवान का भजन नहीं करता हैं। उसके भ्रम एंव कष्ट का निवारन
कभ्री नहीं होता हैै। अन्य लोगों के पाप को क्षमा किया जा सकता है पर लोभी को कभी मांफी नहीं
दीजा सकती

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कबीर के दोहे(नारी)

नारी पुरुष की स्त्री, पुरुष नारी का पूत
यहि ज्ञान विचारि के, छारि चला अवधूत।

अर्थ :
एक नारी पुरुष की स्त्री होती है। एक पुरुष नारी का पुत्र होता है।
इसी ज्ञान को विचार कर एक संत अवधूत कामिनी से विरक्त रहता है।

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कबीर के दोहे(नारी)

कामिनि सुन्दर सर्पिनी, जो छेरै तिहि खाये
जो हरि चरनन राखिया, तिनके निकट ना जाये।

अर्थ :
नारी एक सुन्दर सर्पिणी की भांति है। उसे जो छेरता है उसे वह खा जाती है।
पर जो राम के चरणों मे रमा है उसके नजदीक भी वह नहीं जाती है।

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कबीर के दोहे(नारी)

कामिनि काली नागिनि, तीनो लोक मंझार
राम सनेही उबरै, विषयी खाये झार।

अर्थ :
एक औरत काली नागिन है जो तीनों लोकों में व्याप्त है। परंतु राम का प्रेमी व्यक्ति
उसके काटने से बच जाता है। वह विषयी लोभी लोगों को खोज-खोज कर काटती है।

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कबीर के दोहे(नारी)

नागिन के तो दोये फन, नारी के फन बीस
जाका डसा ना फिर जीये, मरि है बिसबा बीस।

अर्थ :
सांप के केवल दो फंन होते है पर स्त्री के बीस फंन होते है।
स्त्री के डसने पर कोई जीवित नहीं बच सकता है। बीस लोगों को काटने पर बीसों मर जाते है।

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