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Rishi Darshan™

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तपस्वी तप करता है,उसमें कर्तापन मौजूद रहता है।
ज्ञानी ज्ञान अर्जन करता है,लेकिन अर्जन करने वाला मौजूद रह जाता है।
कर्मी कर्म करता है तो कर्ता मौजूद रह जाता है।
लेकिन वही कर्म या ध्यान.. योग में बदल जाए तो योगी स्वयं परमात्मा में अर्पित हो जाता है।
कर्ता नहीं बचता।

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नवरात्रि के प्रथम 3दिन काली की उपासना-
काले कर्मों की आदत से हम ऊपर उठें।
दूसरे 3दिन लक्ष्मी की उपासना-
हम सकल सम्पदा के अधिकारी बनें।
तीसरे 3दिन सरस्वती की उपासना-
हमारे जीवन में 'सत्यं ज्ञानं अनंतं ब्रह्म'
सत् स्वभाव,ज्ञान-स्वभाव और आनंद स्वभाव का प्राकट्य हो।

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समाधि करनी नहीं,जो सहज है,वही समाधान है।
कोई पकड़ नहीं,सब स्वीकार है।
फिर पता चलता है कि सब प्रकृति में है,मैं इसको देखने वाला कोई और हूँ..
फिर अनुभव का विषय चलता है।
यह राज समझाया नहीं जाता।
नियम-वियम भी मन करेगा,मन से भी पार विश्रांति के जगत में पहुंचा जाता है।

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जो इच्छा को पकड़े रहते हैं,उनकी इच्छा पूरी नहीं होती।
इच्छा छोड़ देने से,चित्त में आराम करने से,अपनी आकांक्षाओं की पकड़ छोड़ देने से आकांक्षाएँ स्वतः पूरी होने लगती है।
ईश्वर प्राप्ति की आकांक्षा रखनी पड़ती है और कभी-2 उसको भी छोड़कर चित्त को विश्रांति दी जाती है।

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गहरी-गहरी शांति में तुम्हारे मन को डूब जाने दो..
जप करने के बाद ध्यान करना जरूरी है ।
कीर्तन के बाद अंदर शांत हो जाना बहुत जरूरी है ।
बिना शांति के सामर्थ्य की उपलब्धि नहीं होती ।
चित्त की विश्रांति के बिना सामर्थ्य की संभावना नहीं होती ।

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3 ग्राम पिसी हुई नीम की छाल व 5 ग्राम पुराना गुड़ मिलाकर खाने से बवासीर में आराम मिलता है।इससे ज्वर भी शांत हो जाता है।छाल पीसकर सिर पर लगाने से नकसीर बंद हो जाता है।
ताजे नीम के फूलों का 20 ml रस पीने से फोड़े-फुंसियाँ मिट जाती हैं।इन दिनों बिना नमक का भोजन करें।

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विषैला पदार्थ पेट में चला गया हो तो का रस पिलाकर उल्टी कराने से आराम मिलता है।
नीम रक्त व त्वचा की शुद्धि करता है ।
पत्तियाँ दही में पीसकर लगाने से जड़ से नष्ट हो जाता है।
में भी नीम के रस में आधा चम्मच हल्दी का चूर्ण मिलाकर पीना लाभदायी है।

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जिनके जीवन में ज्ञानवान मिलते हैं,
उनके कर्म भी धीरे-धीरे बदलने लगते हैं और ज्ञान के द्वार खुलने लगते हैं।
जो देह-अध्यासी बुद्धुओं के संग में हैं, उनका जीवन वासनाओं का एक पुतला हो जाता है।
इसीलिए वे लोग भाग्यशाली हैं,जिनको वेदांत-शास्त्र सुनने को मिलता है।

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अपन को कुछ मिल जाता है तो अपन जैसे अज्ञानी आदमी को करने में अहंकार होता है,पालने में ममता होती है,विनाश में विषाद होता है।
लेकिन ईश्वर को करने में विनोद होता है, पालने में समता होती है और विनाश में सहजता रहती है।
इसलिए वो ईश्वर है और हम लोग जीव हैं।

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जो जीवन में बहुत जरूरी हो,सब कुछ मिलता है।
लेकिन संग्रह..कामना..आदमी को दीन व अंधा बना देती है।
जितने ऐहिक पदार्थ है..उनमें कामनाएँ हैं..उतना हमारा अपना मन(Moral) दुर्बल हो जाता है।
सुख लेने की इच्छा से जो पदार्थ हमने एकत्रित किए हैं,वो हमारी आंतरिक कमजोरी बढ़ेगी।

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सूर्य नारायण ना हो तो हमारा जीवन हम जी नहीं सकते।
मनुष्य उसी की कृपा के आधीन जी रहे हैं।
उनमें सुख लेने की आकांक्षा नहीं,प्रकाश उनका स्वभाव है।
हे मानव!तू मन,इंद्रियों,शरीर का प्रकाशक है।अपने स्वभाव में आजा..फिर परिस्थितियाँ और प्रकृति तेरे आगे गिड़गिड़ाने लगेंगी।

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का रस पिसा जीरा,पुदीना और काला नमक मिलाकर पीने से acidity में राहत मिलती है।
उच्च-रक्तचाप में रस पीने से लाभ होता है।
रस में 2 ग्राम रसायन चूर्ण मिला कर पीना स्वप्नदोष में लाभदायी है।
इसका रस शहद के साथ देने से पीलिया,पांडुरोग व रक्तपित्त में आराम मिलता है।

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स्वास्थ्य-प्रदायक नीम
नीम के पत्ते,फूल,फल,छाल एवं जड़ यानी संपूर्ण वृक्ष औषधीय गुणों से भरपूर है।
नीम ठंडा,कड़वा,कसैला,पित्त व कफ शामक,परंतु वात वर्धक है।
नीम की कोंपले चबाने से रक्त की शुद्धि होती है।
रस में मिश्री मिलाकर पीने से शरीर की गर्मी शांत हो जाती है।

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बाहर की परिस्थिति सदा एक सी नहीं रहती।
पत्नी का,पति का स्वभाव भी बदलता है,शरीर के रंगरूप और चेहरे भी बदलते हैं।
बदलने वाले व्यक्तियों,परिस्थितियों और स्वभाव में आदमी सदा सुखी रहेगा कैसे??
ऐसी जिसकी बुद्धि हो गई है,वो सदा सुखस्वरुप उस परमात्मा में स्थित हो जाता है।

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एक बड़ी कंपनी बनाएंगे,छोकरे करोड़पति हो जाएंगे और बुढ़ापे में पानी माँगेंगे तो बहु दूध का कटोरा लायेगी।
जो ऐसा करके बच्चों को पढ़ाता-लिखाता है,उसको बुढ़ापे में बुरी तरह रोना पड़ता है।
भविष्य में सुख लेने की कामना से जो भी प्रवृत्ति की जाती है,वो बड़ा दुःख देती है।

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दासी को 60 चाबुक पड़े।
30 पड़े तब तक वो रो रही थी,31वां लगा तो बड़ी जोरों की हँसी।
सम्राट ने पूछा कि तू हँसी क्यों?
बोली-30 तक था कि हाय मर गई।
फिर लगा 60 मिनट सोई उस फूलों की शैय्या पर,तो 60 चाबुक लगते हैं।जो नित्य सोते हैं,उनका क्या होगा?मैं तो थोड़े में बच गई।

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होली के बाद के 20-25 दिन आप सावधान रहना।
नीम के पत्ते कोमल अथवा नीम फूलों का रस निकाल कर 15 से 50 मिलीग्राम पी लो।
ठंडक भी रहेगी और गर्मी झेलने की शक्ति भी रहेगी।
और होली के बाद 15-20 दिन तक बिना नमक का भोजन करें तो आपके स्वास्थ्य में चार-चाँद लग जाए।

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होली के दिनों में सूर्य के सीधे किरण धरती पर आते हैं,गर्मी बढ़ जाती है।
होली के दिन पलाश के फूलों से एक-दूसरे को रंग लगाने से आप सूर्य की गर्मी को पचाने के काबिल हो गए।
आपके सप्तरंग और सप्तधातु संतुलित रहेंगे।
आप चिड़चिड़े,अशांत या हार्ट-अटैक के मरीज नहीं बनेंगे।

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मेरी माँ ने मोटी रोटी बनाई,उसको कच्चा धागा लपेटा दोनों तरफ।
मेरे को बोला-देखो,अभी होली जलाएँगे।
इतनी भभकती अग्नि में रोटी पक जाएगी..रोटी मतलब मोटा वरदान का अहं।
लेकिन धागा ज्यों का त्यों रहेगा।
धागा मतलब भगवान की श्रद्धा-भक्ति का धागा.. भगवान इसकी रक्षा करते हैं।

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