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छोटी कविता

@iTanwirr

जितनी छोटी हो कविता
उतना ही ज्यादा बसेगी मन में।

साहित्य। सिनेमा। जीवन।

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calendar_today17-10-2018 00:07:04

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छोटी कविता(@iTanwirr) 's Twitter Profile Photo

बचपन की यादें ताज़ा करें...अपने पसंदीदा टीवी प्रोग्राम का नाम या पोस्टर साझा किजिए जो आज भी आपको बख़ूबी याद है।

बचपन की यादें ताज़ा करें...अपने पसंदीदा टीवी प्रोग्राम का नाम या पोस्टर साझा किजिए जो आज भी आपको बख़ूबी याद है।
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Shikha Singh(@Singhshikha1577) 's Twitter Profile Photo

आज़ादी देना सरल है!
आज़ादी बर्दाश्त करना मुश्किल है.?

सिंह

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विश्व नगर में कौन सुनेगा मेरी मूक पुकार-
रिक्ति-भरे एकाकी उर की तड़प रही झंकार-
'अपरिचित! करूँ तुम्हें क्या प्यार ?’

◆ अज्ञेय

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क्या तुम्हें मालूम है, मेरे प्यार,
कि दर्द के अकेलेपन से कहीं अधिक
असह्य हो सकता है कभी-कभी
ख़ुशी का अकेलापन?

◆ कुँवर नारायण

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अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आती है।

◆ जयशंकर प्रसाद

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लहलहाते खेत आसमान को छूते
खड़ी फ़सलें मायके आईं लड़कियों की तरह खिलखिलातीं
लिपे-पुते घर, जिनके भीतर से
दही मथने और गेहूँ फटकने का सुरीला शोर

मण्डी में मिलते अनाज के सही दाम
खिल-खिल जातीं बाछें घर-भर की
कितना ख़ुशहाल जीवन, विज्ञापन में किसान का !

◆ नीलेश रघुवंशी

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तुम मुझे छोड़ के जाओगे तो मर जाऊँगा
यूँ करो जाने से पहले मुझे पागल कर दो

◆ बशीर बद्र

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मुसव्विर(@Akssikander) 's Twitter Profile Photo

इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़

-साहिर लुधियानवी

इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर हम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़ -साहिर लुधियानवी
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लहलहाते खेत आसमान को छूते
खड़ी फ़सलें मायके आईं लड़कियों की तरह खिलखिलातीं
लिपे-पुते घर, जिनके भीतर से
दही मथने और गेहूँ फटकने का सुरीला शोर

मण्डी में मिलते अनाज के सही दाम
खिल-खिल जातीं बाछें घर-भर की
कितना ख़ुशहाल जीवन, विज्ञापन में किसान का !

◆ नीलेश रघुवंशी

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मेरे कौर में
मेरे ही ख़ून का स्वाद है
मेरे भीतर
एक मज़दूर
अब तक ज़िंदाबाद है।

◆ राज कुमार सिंह

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Jasvinder Pal Singh(@Jasvind18446528) 's Twitter Profile Photo

वो जो उतरा है मेरी नज़रों से,
कभी उसकी ही नज़र उतारी थी हमने...

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साधारणतया मौन अच्छा है
मगर मनन के लिए;
किन्तु जब चारों ओर शोर हो
सच के हनन के लिए
तब तुम्हें अपनी बात
ज्वलन्त शब्दों में कहनी चाहिए
शीश कटाना पड़े
या न कटाना पड़े
तैयारी तो उसकी रहनी चाहिए

◆ भवानी प्रसाद मिश्र

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'मजदूर' पे चंद पंक्तियाँ, गीत के बोल, या कोई शेर...

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अब कहाँ फ़िल्में बनती हैं ऐसी। अब कौन गाता है मज़दूरों और किसानों के लिए....

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कितनी अकेली थी वो राहें हम जिनपे
अब तक अकेले चलते रहे
तुझसे बिछड़कर भी ओ बेख़बर
तेरे ही ग़म में जलते रहे
तुने किया जो शिक़वा
हम वो गिला कर ना सके
हम बेवफ़ा हरगिज़ ना थे
पर हम वफ़ा कर ना सके....

◆ आनंद बख़्शी

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जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तुजू क्या है ...

◆ ग़ालिब

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