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MahaRana (Kavita)

@ranak72

Guru Siyag's Siddha Yoga (GSSY) : A Silent Revolution !
आध्यात्मिक विज्ञान
Spritual science
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आपमें अभी से परिवर्तन आना शुरू हो जाएग

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calendar_today12-05-2020 20:08:38

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सच्चे गुरू के यहां भीड़ नहीं हो सकती , उस ज्ञान अग्नि शिखा के पास तो केवल वही ठहर सकता है , जो पतंगा की भांति समां में जल मिटने के लिए व्याकुल हो उठा हो । सच्चे गुरू के प्रेम सामीप्य में खिंचने का मतलब है , गुरू ज्ञानअग्नि में शिष्य के अहंकार ( मैं बुद्धि ) का जल मिटना । गुरू…

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बिन्दु-भेद
ध्यान में अब एक और चमत्कार हुआ। मैंने काले अन्धकार भरे लोक के बाद अपने सामने एक अलंकृत हाथी देखा। उसके सात मुख थे। वह दिव्य और सुन्दर वस्त्रों से सुशोभित था और सोने, मोती तथा मणियों के बड़े-बड़े हार पहने हुए था। प्रातःकालीन सूर्य किरणें उस पर गिरने से उसके सब आभूषण चमक…

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बिन्दु-भेद
चित्रशक्ति विलास
अब दोनों आँखों की पुतलियाँ समान हो गयीं। दोनों आँखों से एक ही वस्तु दिखनी शुरू हो गयी। इसे शास्त्रों में 'बिन्दु-भेद' कहते हैं। तदनन्तर आँखों में नील प्रकाश का उदय हुआ। यह शाम्भवी मुद्रा होने की पूर्व तैयारी है। जब साधक में नीलोदय होता है, तब उसके…

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परमात्मा सभी से अहैतुक प्रेम करता है। उसका प्रेम महान है, पक्षपातरहित है। परमात्मा का प्रेम संसारियों जैसा व्यावहारिक प्रेम नहीं है। व्यवहार का प्रेम, प्रेम नहीं होता। वह तो व्यापार है, खरीद-बिक्री है। नित्यप्रति कसाई भेड़ को प्रेम से खिलाता-पिलाता है, वह क्या प्रेम है? वह तो…

परमात्मा सभी से अहैतुक प्रेम करता है। उसका प्रेम महान है, पक्षपातरहित है। परमात्मा का प्रेम संसारियों जैसा व्यावहारिक प्रेम नहीं है। व्यवहार का प्रेम, प्रेम नहीं होता। वह तो व्यापार है, खरीद-बिक्री है। नित्यप्रति कसाई भेड़ को प्रेम से खिलाता-पिलाता है, वह क्या प्रेम है? वह तो…
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कृष्णेश्वरी

श्वेतध्यान के बाद अब कृष्णध्यान शुरू हो गया। कृष्ण यानी भगवान श्रीकृष्ण नहीं, लेकिन कृष्ण रंग की ज्योति, जो 'पर्वार्ध' यानी अंगुली के अग्रभाग जितनी है, दिखने लग गयी। अब ध्यान का गतिस्थान आगे बढ़ा। ध्यान स्वभावतः ही कभी हृदय में और कभी त्रिकुटी में स्थिर होने लगा।…

कृष्णेश्वरी श्वेतध्यान के बाद अब कृष्णध्यान शुरू हो गया। कृष्ण यानी भगवान श्रीकृष्ण नहीं, लेकिन कृष्ण रंग की ज्योति, जो 'पर्वार्ध' यानी अंगुली के अग्रभाग जितनी है, दिखने लग गयी। अब ध्यान का गतिस्थान आगे बढ़ा। ध्यान स्वभावतः ही कभी हृदय में और कभी त्रिकुटी में स्थिर होने लगा।…
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सर्पदंश

एक दिन प्रातःकाल रक्त, श्वेत, कृष्णेश्वरी के बीच ध्यान स्थिर होते ही महा- अन्धकारमय नगर देखा। न जाने मैं उस नगर के अन्दर कहाँ तक चला गया। जाते-जाते बहुत दूर तक निकल गया। अन्त तक जाते-जाते उस ज्योति में स्थित दृश्य, वेग से बदल गया। पूर्व की रक्त, श्वेत, कृष्णेश्वरी को…

सर्पदंश एक दिन प्रातःकाल रक्त, श्वेत, कृष्णेश्वरी के बीच ध्यान स्थिर होते ही महा- अन्धकारमय नगर देखा। न जाने मैं उस नगर के अन्दर कहाँ तक चला गया। जाते-जाते बहुत दूर तक निकल गया। अन्त तक जाते-जाते उस ज्योति में स्थित दृश्य, वेग से बदल गया। पूर्व की रक्त, श्वेत, कृष्णेश्वरी को…
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नरक और यमराज के दर्शन

ऐसे ही कुछ दिन बीते, बड़ी मस्ती के साथ। फिर कृष्णध्यान होने लगा। एक बार एक लोक देखा जो अति ही मलिन था। सिद्धविद्यार्थी सावधानी से इस प्रसंग का पठन करें। उस दिन ध्यान को बैठते ही बड़े वेग से मेरा सारा शरीर हिलने लगा, वैसे ही जैसे किसी में भूत व देवता का…

नरक और यमराज के दर्शन ऐसे ही कुछ दिन बीते, बड़ी मस्ती के साथ। फिर कृष्णध्यान होने लगा। एक बार एक लोक देखा जो अति ही मलिन था। सिद्धविद्यार्थी सावधानी से इस प्रसंग का पठन करें। उस दिन ध्यान को बैठते ही बड़े वेग से मेरा सारा शरीर हिलने लगा, वैसे ही जैसे किसी में भूत व देवता का…
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⚛️ आत्मवत सर्वभूतेषु ⚛️
--------------------------
गले का कैंसर था। पानी भी भीतर जाना मुश्किल हो गया, भोजन भी जाना मुश्किल हो गया। तो विवेकानंद ने एक दिन अपने गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस से कहा कि ' आप माँ काली से अपने लिए प्रार्थना क्यों नही करते ? क्षणभर की बात है, आप कह दें, और…

⚛️ आत्मवत सर्वभूतेषु ⚛️ -------------------------- गले का कैंसर था। पानी भी भीतर जाना मुश्किल हो गया, भोजन भी जाना मुश्किल हो गया। तो विवेकानंद ने एक दिन अपने गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस से कहा कि ' आप माँ काली से अपने लिए प्रार्थना क्यों नही करते ? क्षणभर की बात है, आप कह दें, और…
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Siddhyoga:
ॐ श्री गंगाई नाथाय नमः
तो इस प्रकार यहां। नौ द्वार जो हैं, माया के हैं, आँख, नाक, मुंह वगैरह वगैरह और यह दसवां द्वार जिसको शिव की, शिव की तीसरी आंख देखी है आपने, वो दसवां द्वार जो है वो entrance है बाकी तो सब exit है। तो यह जब तक नहीं खुलेगा, तीसरा नेत्र जब तक नहीं…

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कलियुग के समय सबसे प्रभावी आध्यात्मिक अभ्यास कौन-सा है?

हर युग के लिए अलग-अलग आध्यात्मिक साधना हमारे शास्त्रों में बताई गयी है।
हम अभी कलयुग के समय में रह रहे है। इस समय में सबसे प्रभावी आध्यात्मिक साधना भगवान के नाम का जप है क्योंकि इस युग में अन्य प्रकार की कठोर…

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श्वेतेश्वरी का ध्यान जमने लगा। अब पूरी अंगुष्ठ प्रमाण श्वेतज्योति सामने आ कर खड़ी हो जाती। ध्यान स्थूल शरीर को छोड़ कर सूक्ष्म शरीर में होने लगा। अभी तक जो श्वेतेश्वरी के नाम से कहा गया है, वह अंगुष्ठ की आकृति का सूक्ष्म शरीर है। इस शरीर में जीवात्मा स्वप्नावस्था की अनुभूति करता…

श्वेतेश्वरी का ध्यान जमने लगा। अब पूरी अंगुष्ठ प्रमाण श्वेतज्योति सामने आ कर खड़ी हो जाती। ध्यान स्थूल शरीर को छोड़ कर सूक्ष्म शरीर में होने लगा। अभी तक जो श्वेतेश्वरी के नाम से कहा गया है, वह अंगुष्ठ की आकृति का सूक्ष्म शरीर है। इस शरीर में जीवात्मा स्वप्नावस्था की अनुभूति करता…
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ध्यान में बैठते ही, नित्यप्रति प्रथम, शरीर में प्राणवायु का वेग से संचार होता, तदनन्तर रक्त और श्वेतज्योतियाँ दिखायी देतीं। ध्यान होते-होते अब लोक-लोकान्तर भी दिखने लगे थे। अन्य देवता तथा शिवलिंग भी बार- बार देखता था। श्वेतज्योति के उदित होने पर ध्यान सूक्ष्मशरीर में होने लगा और…

ध्यान में बैठते ही, नित्यप्रति प्रथम, शरीर में प्राणवायु का वेग से संचार होता, तदनन्तर रक्त और श्वेतज्योतियाँ दिखायी देतीं। ध्यान होते-होते अब लोक-लोकान्तर भी दिखने लगे थे। अन्य देवता तथा शिवलिंग भी बार- बार देखता था। श्वेतज्योति के उदित होने पर ध्यान सूक्ष्मशरीर में होने लगा और…
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यौगिक क्रिया

फिर ध्यान की अनुभूतियों का हमेशा सूक्ष्मता से मनन करता। अब बोलना बहुत कम कर दिया था, क्योंकि पढ़ने में, ध्यान में और विश्रान्ति में बहुत समय बीतता था। जिस दिन कोई भक्त मण्डली आ जाती, उस दिन उनसे कुछ बातें हो जातीं। परन्तु समय का नियम बदल जाने से मुझे तन्द्रा नहीं…

यौगिक क्रिया फिर ध्यान की अनुभूतियों का हमेशा सूक्ष्मता से मनन करता। अब बोलना बहुत कम कर दिया था, क्योंकि पढ़ने में, ध्यान में और विश्रान्ति में बहुत समय बीतता था। जिस दिन कोई भक्त मण्डली आ जाती, उस दिन उनसे कुछ बातें हो जातीं। परन्तु समय का नियम बदल जाने से मुझे तन्द्रा नहीं…
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