Riya Talreja
@riyatalreja396
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15-10-2014 13:58:26
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आत्मीयता और पारस्परिक प्रीति ही किसी भी संबध की प्राण सत्ता है। अतः साधनों की प्रचुरता व संग्रहण में कुटुंबियों और स्वजनों की अनदेखी न करें। अपनी व्यस्तताओं में से परिवार, समाज और देश के लिए कुछ समय अवश्य निकालें।
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जो साधक अन्य की विकलताएँ और अभाव देख पाते हैं, वही परमात्मा के प्रिय हैं। परमार्थ प्रकृति का मूल स्वर है। धरती - अम्बर, अग्नि -जल, पवन-प्राण, प्रकाशादि के रूप में परमात्मा स्वयं भी सेवा और पारमार्थिक कार्यों में संलग्न है। अत: पारमार्थिक रहें !
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आज भौतिकीय सुख वांछाओं में अभिवृद्धि की उत्कंठा इतनी प्रबल है कि प्रेम और कौटुंबिक प्रवृत्तियाँ गौण होती जा रही हैं । मानवीय संवेदनायें समाचार सूचना में परिवर्तित हो गई हैं । हमें यह समझना होगा कि यांत्रिकीय उपकरण कभी भी आत्मीय सुख का आधार नही हो सकते ।
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नकारात्मक अशुभ विचार , शुभ सकारात्मक अच्छे विचारों के सामने टिक नहीं सकते। साहस भय पर विजय प्राप्त करता है।धैर्य क्रोध और चिड़चिड़ेपन पर विजय प्राप्त करता है। प्रेम घृणा पर विजय प्राप्त करता है और पवित्रता वासना पर विजय प्राप्त करती है।
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निर्बाध सफलता प्राप्ति के लिए ज्ञान, पुरुषार्थ और सटीक योजनाओं का सही समय पर क्रियान्वयन हो।उच्चतर लक्ष्यों की प्रति निमित्त जागरूकता, पुरुषार्थ और विवेक अपेक्षित है।अत: आध्यात्मिक रहें ।
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धरा की समस्त विभूतियों साधनों एवं सद्प्रवृत्तियों की सार्थकता तभी है जब जीवन भगवदोन्मुखी हो अन्यथा सिद्धियों का अहंकार ही मनुष्य के पतन का कारण बन जाता है । आओ मिलकर होलिका दहन के अवसर पर अपने जीवन से अहंकार का विसर्जन करें।
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'आत्मन: प्रतिकूलानि परेषाम् न समाचरेत'
समष्टि के सभी प्राणियों के हित अधिकारों और स्वाभिमान का रक्षण ही भारतीय संस्कृति का वैशिष्ट्य है। हमारी संस्कृति जीव मात्र एवम् सर्वत्र परमात्मा की उपस्थिति का अनुभव करने वाली दिव्य संस्कृति है।
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पुस्तकें ज्ञान का स्रोत व जीवन्त दैव प्रतिमाएँ हैं ।समष्टि का सम्पूर्ण सत्य विज्ञान संस्कृति संस्कार और जीवन का यथार्थ पुस्तकों में ही संकलित व समाहित है । #विश्व_पुस्तक_मेला में अनेक लेखकों और विचारकों से मिलकर अभिभूत हूँ |
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श्रमेव जयते !
इस धरा की समस्त अनुकूलताएँ एवं नयनाभिराम दृश्य मनुष्य के उद्यम और श्रम साधना का ही परिणाम हैं, पुरुषार्थ रहित व्यक्ति से देवता भी विमुख हो जाते हैं।अत: जीवन के उन्नयन के लिए श्रमशील रहें ।
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अज्ञानता के कारण व्यक्ति का मन इधर-उधर भटकता रहता है क्योंकि उसे अपने सही गंतव्य का पता ही नहीं होता है, जबकि कि परम आनंद का स्रोत उसमें स्वयं समाहित है | अतः आनंद और समाधान के लिए अपनी अविनाशी सत्ता अर्थात् स्वयं की और बढ़ें |
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संसार की नश्वरता की अनुभूति, आत्म ज्ञान की स्थिरता और इंद्रिय जन्य विकारों पर मुक्ति ही जीवन की सच्ची जय है। विजया एकादशी सर्वथा शुभ हो।
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उद्भव स्थिति संहारकारिणीं हारिणीम्।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामबल्लभाम्॥
पूर्ण परात्पर ब्रह्म मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की लीला सहचरी जगत जननी माँ जानकी के प्राकट्योत्सव #सीता_अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ !
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“सर्वं खल्विदं ब्रह्म”
एक ही ब्रह्म समान रूप से सम्पूर्ण जैव जगत् में विस्तृत है।जातियाँ भारत का सौंदर्य हैं ; सभी जातियाँ समान हैं और सभी जातियाँ महान हैं। सामाजिक समरसता के सूत्रधार महान #संत_रविदास जी की जयंती पर सादर भावपूर्ण स्मरण ।
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नदियां जीवन का मूल स्रोत तथा अनेक सभ्यता और संस्कृतियों की संवाहिकाएं हैं ।सलिलाओं की शुचिता, सातत्य और अविरलता निर्मलता के लिये आगे आएँ ।माघ पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
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अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः । अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ॥
Seek to know who you really are. Spiritual path aims at providing an understanding of your true nature. You are not the body, mind or intellect. You are the eternal,divine,pure Self.
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आज बाडमेर राजस्थान तारातरा मठ के श्री स्वामी जगराम पुरी जी द्वारा आयोजित मठ के वार्षिक उत्सव में योगऋषि पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज जूना अखाड़ा से स्वामी हरिगिरि जी व प्रेमगिरि सहित लाखों अनुयायीओं व अन्य संतों के साथ सहकार कर अभिभूत हूँ । स्वामी रामदेव #AvdheshanandG_Quotes