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धार्मिक,राजनेतिक,सामाजिक
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calendar_today28-08-2016 17:06:50

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शुभ बुधवार।विघ्नहर्ता भगवान गणपति की कृपादृष्टि सब पर अनवरत बनी रहे।सर्वत्र सुख-शांति हो।लोगों में परस्पर प्रेम और सद्भावना हो। 'ऊँ गं गणपत्ये नमः।' 'ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं स:बुधाय नमः।' 'ऊँ सौम्यरूपाय विद्महे रोहिणी प्रियाय धीमहि तन्नो बुध: प्रचोदयात्।' सबका भला सर्बत्त काभला।

शुभ बुधवार।विघ्नहर्ता भगवान गणपति की कृपादृष्टि सब पर अनवरत बनी रहे।सर्वत्र सुख-शांति हो।लोगों में परस्पर प्रेम और सद्भावना हो। 'ऊँ गं गणपत्ये नमः।' 'ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं स:बुधाय नमः।' 'ऊँ सौम्यरूपाय विद्महे रोहिणी प्रियाय धीमहि तन्नो बुध: प्रचोदयात्।' सबका भला सर्बत्त काभला।
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अमृतवेला की सब मित्रों को कर बद्ध राम राम जी। राम नाम मुदमंगलकारी विघ्नहरे सबपातक हारी। सर्वशक्तिमते परमात्मने श्रीरामाय नमः। राम राम राम बोलो राम राम राम राम सवारे बिगड़े काम, राम सवारे सबके काम। तुलसी माता शालिग्राम, बोलो राम राम राम। सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम।

अमृतवेला की सब मित्रों को कर बद्ध राम राम जी। राम नाम मुदमंगलकारी विघ्नहरे सबपातक हारी। सर्वशक्तिमते परमात्मने श्रीरामाय नमः। राम राम राम बोलो राम राम राम राम सवारे बिगड़े काम, राम सवारे सबके काम। तुलसी माता शालिग्राम, बोलो राम राम राम। सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम।
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सर्वशक्तिमते परमात्मने श्रीरामाय नमः। सर्वशक्तिमते परमात्मने श्रीरामाय नमः।रामनाम मुदमंगलकारी विघ्नहरे सबपातक हारी। रामनाम सदा सुखदायी। रामनाम भजो मेरे भाई। रामनाम है सबसे ऊँचा, दु:ख कष्ट मिटावे समूचा। रामनाम मुदमंगलकारी विघ्नहरे सबपातक हारी। जय श्रीराम श्रीराम श्रीराम श्रीराम।

सर्वशक्तिमते परमात्मने श्रीरामाय नमः। सर्वशक्तिमते परमात्मने श्रीरामाय नमः।रामनाम मुदमंगलकारी विघ्नहरे सबपातक हारी। रामनाम सदा सुखदायी। रामनाम भजो मेरे भाई। रामनाम है सबसे ऊँचा, दु:ख कष्ट मिटावे समूचा। रामनाम मुदमंगलकारी विघ्नहरे सबपातक हारी। जय श्रीराम श्रीराम श्रीराम श्रीराम।
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शशि रवि हरिहर विधि सनकादी।
आये सुर जे परम अनादी ॥७॥
विश्वामित्र संग मुनि झारी।
सहससात ऋषि इच्छाचारी ॥८॥

चन्द्रमा,सूर्य,विष्णु,महादेव,ब्रह्मा,सनक, सनन्दन,सनातन,सनत्कुमार ये अनादि- काल के सब देवता आये॥ ७ ॥विश्वामित्रजी के संग में सात हजार अपनी इच्छा से विचरने वाले मुनि आये॥८॥

शशि रवि हरिहर विधि सनकादी। आये सुर जे परम अनादी ॥७॥ विश्वामित्र संग मुनि झारी। सहससात ऋषि इच्छाचारी ॥८॥ चन्द्रमा,सूर्य,विष्णु,महादेव,ब्रह्मा,सनक, सनन्दन,सनातन,सनत्कुमार ये अनादि- काल के सब देवता आये॥ ७ ॥विश्वामित्रजी के संग में सात हजार अपनी इच्छा से विचरने वाले मुनि आये॥८॥
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चढ़ि विमान सुर नारि सिहाई।
करहिं गान कलकण्ठ लजाई ॥५॥
आये मुनिवर यूथ घनेरे ।
देहिं कृपानिधि सुन्दर डेरे ॥६॥

चढ़ि विमान सुर नारि सिहाई। करहिं गान कलकण्ठ लजाई ॥५॥ आये मुनिवर यूथ घनेरे । देहिं कृपानिधि सुन्दर डेरे ॥६॥
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देवताओं की स्त्रियें विमानों हैं पर चढ़ी बड़ाई करती हैं और इस प्रकार गाती हैं जिसको सुनकर कोयल का कण्ठ भी लजाता है ॥ ५ ॥ मुनीश्वरों के यूथ के यूथ आते हैं और सबको श्रीरामचन्द्रजी सुन्दर स्थान देते हैं ॥ ६ ॥

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जाम्बवन्त सुग्रीव विभीषण।
अरु नलनील द्विविद कुलभूषण ॥३॥
आये सब जहँ राम कृपाला।
वरुण कुबेर इन्द्र यम काला ॥४॥

कुल के भूषणरूप जाम्बवन्त, सुग्रीव, विभीषण, नल, नील, द्विविद॥३॥ जहाँ कृपासागर श्रीरामचन्द्रजी थे वहां आये और वरुण, कुबेर, इन्द्र,यम,काल भी आये॥४॥

जाम्बवन्त सुग्रीव विभीषण। अरु नलनील द्विविद कुलभूषण ॥३॥ आये सब जहँ राम कृपाला। वरुण कुबेर इन्द्र यम काला ॥४॥ कुल के भूषणरूप जाम्बवन्त, सुग्रीव, विभीषण, नल, नील, द्विविद॥३॥ जहाँ कृपासागर श्रीरामचन्द्रजी थे वहां आये और वरुण, कुबेर, इन्द्र,यम,काल भी आये॥४॥
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गुरु समेत प्रभु अवधहि आये।
देखि बनाव बहुत सुख पाये ॥१॥ मिथिलापुर चर तुरत सिधाये।
देश देश के नृपति बुलाये ॥२॥

फिर गुरुजी के साथ श्रीरामचन्द्रजी अयोध्याजी में आये और बनाव देखकर बहुत सुख पाया ॥ १ ॥ उसी समय मिथिलापुरी को तुरन्त दूत चले और देश देश के राजा बुलाये गये ॥ २ ॥

गुरु समेत प्रभु अवधहि आये। देखि बनाव बहुत सुख पाये ॥१॥ मिथिलापुर चर तुरत सिधाये। देश देश के नृपति बुलाये ॥२॥ फिर गुरुजी के साथ श्रीरामचन्द्रजी अयोध्याजी में आये और बनाव देखकर बहुत सुख पाया ॥ १ ॥ उसी समय मिथिलापुरी को तुरन्त दूत चले और देश देश के राजा बुलाये गये ॥ २ ॥
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दोहा-सुनहु राम रघुवंशमणि, न्योत सकलपुर जाति ॥
वरुण कुबेर सु इन्द्र यम, मुनि महिसुर गुरु ज्ञाति ॥२३॥

हे रघुवंशमणि ! रामचन्द्रजी सुनिये, सब पुरकी जातियों को भी नेवता दो, बरुण, कुबेर इन्द्र, यम, मुनि, ब्राह्मण, जातियोंके लोगों को न्योता दो ॥ २३ ॥

दोहा-सुनहु राम रघुवंशमणि, न्योत सकलपुर जाति ॥ वरुण कुबेर सु इन्द्र यम, मुनि महिसुर गुरु ज्ञाति ॥२३॥ हे रघुवंशमणि ! रामचन्द्रजी सुनिये, सब पुरकी जातियों को भी नेवता दो, बरुण, कुबेर इन्द्र, यम, मुनि, ब्राह्मण, जातियोंके लोगों को न्योता दो ॥ २३ ॥
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प्रभु मनकी गति मुनिवर जानी।
बोले अति सनेहमय बानी ॥७॥
पठवहु दूत जनकपुर आजू ।
आवहिं जनक समेत समाजू ॥८॥

मुनिराज प्रभु के मन की गति जानकर अत्यन्त स्नेह से कोमल वाणी बोले ॥७॥कि आज ही जनकपुर को दूत भेज दो,जो जनकजी भी समाज सहित यहाँ पर आवें॥८॥

प्रभु मनकी गति मुनिवर जानी। बोले अति सनेहमय बानी ॥७॥ पठवहु दूत जनकपुर आजू । आवहिं जनक समेत समाजू ॥८॥ मुनिराज प्रभु के मन की गति जानकर अत्यन्त स्नेह से कोमल वाणी बोले ॥७॥कि आज ही जनकपुर को दूत भेज दो,जो जनकजी भी समाज सहित यहाँ पर आवें॥८॥
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जाहु मुनिनके थल वनमाहीं।
सादर निवत देहु सब काहीं ॥५॥
जहाँ राम पूछेउ गुरुदेवा ।
आज्ञा होइ करउँ सोइ सेवा ॥६॥

उनको आज्ञा दी कि वन में मुनीश्वरों के आश्रमों पर जाओ और सब किसी को न्योता दे बुलाकर ले आओ ॥५॥ उधर श्रीरामचन्द्रजी से पूछने लगे कि जो आज्ञा हो वही सब सेवा मैं करूँ ? ॥६॥

जाहु मुनिनके थल वनमाहीं। सादर निवत देहु सब काहीं ॥५॥ जहाँ राम पूछेउ गुरुदेवा । आज्ञा होइ करउँ सोइ सेवा ॥६॥ उनको आज्ञा दी कि वन में मुनीश्वरों के आश्रमों पर जाओ और सब किसी को न्योता दे बुलाकर ले आओ ॥५॥ उधर श्रीरामचन्द्रजी से पूछने लगे कि जो आज्ञा हो वही सब सेवा मैं करूँ ? ॥६॥
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लगे सँवारन रथ गज बाजी ।
सुनि मख गगन दुन्दुभी बाजी॥३॥
सुनत सचिव चर तुरत बुलाये ।
कवि जयजीव माथ तिन नाये ॥४॥

पुरवासी लोग रथ, हाथी, घोड़े सँवारने लगे; यज्ञका (विधान) सुनकर आकाश में नगाड़े बजने लगे ॥ ३ ॥ फिर मन्त्री ने तुरन्त दूत्तों को बुलाया, उन्होंने जयजीव कहकर माथा नवाया ॥ ४ ॥

लगे सँवारन रथ गज बाजी । सुनि मख गगन दुन्दुभी बाजी॥३॥ सुनत सचिव चर तुरत बुलाये । कवि जयजीव माथ तिन नाये ॥४॥ पुरवासी लोग रथ, हाथी, घोड़े सँवारने लगे; यज्ञका (विधान) सुनकर आकाश में नगाड़े बजने लगे ॥ ३ ॥ फिर मन्त्री ने तुरन्त दूत्तों को बुलाया, उन्होंने जयजीव कहकर माथा नवाया ॥ ४ ॥
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अमृतवेला प्रभुजी की वेला,रामनाम जपने की वेला।जन्म सफल करने की वेला।शुभ कर्म करने के लिए संकल्प लेने की पावन पवित्र वेला। आओ मित्रो !रामनाम सुमिरन करें।प्रभुजी से प्रभुजी को माँगलें। रामजी हमारे पास हों, हमारे साथ हों, तो सबकुछ मिल गया समझो।अर्जुन बनें,दुर्योधन नहीं।जयश्री राम।

अमृतवेला प्रभुजी की वेला,रामनाम जपने की वेला।जन्म सफल करने की वेला।शुभ कर्म करने के लिए संकल्प लेने की पावन पवित्र वेला। आओ मित्रो !रामनाम सुमिरन करें।प्रभुजी से प्रभुजी को माँगलें। रामजी हमारे पास हों, हमारे साथ हों, तो सबकुछ मिल गया समझो।अर्जुन बनें,दुर्योधन नहीं।जयश्री राम।
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चले सकल सेवक सुनि बानी।
सुनि राउरि हरषीऺऺ सब रानी ॥१॥
रचहिं वितान अनेक प्रकारा ।
देखि अवध निजमन विधिहारा ॥२॥

यह वाणी सुनकर सब सेवक चले और रानियाँ भी इस समाचार को सुनकर प्रसन्न हुई॥१॥अनेक प्रकारके मण्डप बनाये, उस समय अयोध्याजी को देख ब्रह्माजी भी चकित हो अपने मनमें हार गये ॥ २॥

चले सकल सेवक सुनि बानी। सुनि राउरि हरषीऺऺ सब रानी ॥१॥ रचहिं वितान अनेक प्रकारा । देखि अवध निजमन विधिहारा ॥२॥ यह वाणी सुनकर सब सेवक चले और रानियाँ भी इस समाचार को सुनकर प्रसन्न हुई॥१॥अनेक प्रकारके मण्डप बनाये, उस समय अयोध्याजी को देख ब्रह्माजी भी चकित हो अपने मनमें हार गये ॥ २॥
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दोहा-सेवक पुरजन सचिव सब, सादर तुरत बुलाय ॥हाट बाट पुर द्वार गृह, रचहु वितान बनाय ॥ २२ ॥

सेवक, पुरवासी, मन्त्री आदरपूर्वक सबको तुरन्त बुलाकर यह आज्ञा दी कि नगर के बाजार, मार्ग द्वार और घरों को सजाओ स्थान स्थान पर मंडप बनाओ ॥ २२ ॥

दोहा-सेवक पुरजन सचिव सब, सादर तुरत बुलाय ॥हाट बाट पुर द्वार गृह, रचहु वितान बनाय ॥ २२ ॥ सेवक, पुरवासी, मन्त्री आदरपूर्वक सबको तुरन्त बुलाकर यह आज्ञा दी कि नगर के बाजार, मार्ग द्वार और घरों को सजाओ स्थान स्थान पर मंडप बनाओ ॥ २२ ॥
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सुनि सुनि वचन भरत रिपुदमनू ।
हरषि सचिव लछिमन गृह गमनू ॥७॥
विविध प्रकार चरणकरि सेवा ।
चले भरत सँग सब महिदेवा ॥८॥

मुनि के वचन सुनकर भरत,शत्रुघ्न और लक्ष्मण मन्त्रियों समेत प्रसन्न हो घर को बिदा हुए ॥और अनेक प्रकार से चरणों की सेवा करके भरतजी के सङ्ग में बहुत से ब्राह्मण चले॥

सुनि सुनि वचन भरत रिपुदमनू । हरषि सचिव लछिमन गृह गमनू ॥७॥ विविध प्रकार चरणकरि सेवा । चले भरत सँग सब महिदेवा ॥८॥ मुनि के वचन सुनकर भरत,शत्रुघ्न और लक्ष्मण मन्त्रियों समेत प्रसन्न हो घर को बिदा हुए ॥और अनेक प्रकार से चरणों की सेवा करके भरतजी के सङ्ग में बहुत से ब्राह्मण चले॥
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सुनि पुलके मुनि वचन सप्रीती।
कस न कहहु तुम सुन्दर नीती ॥५॥
पूजहि विधि अभिलाष तुम्हारा ।
उठहु भरत अब करहु सँभारा ॥६॥

सुनि पुलके मुनि वचन सप्रीती। कस न कहहु तुम सुन्दर नीती ॥५॥ पूजहि विधि अभिलाष तुम्हारा । उठहु भरत अब करहु सँभारा ॥६॥
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यह प्रेम के वचन सुनकर मुनीश्वर बड़े प्रसन्न हुए और कहने लगे कि हे राम ! आप क्यों न सुन्दर नीति के वचन कहो ? ॥ ५ ॥परमात्मा आपकी अभिलाषा पूरी करेंगे, हे भरतजी ! उठो और अब तैयारी करो ॥ ६ ॥

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शुभ रविवार ! भगवान सूर्यनारायण सम्पूर्ण विश्व में सर्वत्र प्रचार/प्रसार करें। सब स्वस्थ हों,सर्वत्र सुख-शान्ति हो। 'ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं स:सूर्याय नमः।' 'ऊँ आदित्याय विद्महे भास्कराय धीमहि तन्नो भानु: प्रचोदयात्।' 'ऊँ ह्रीं हंसाघृणि सूर्यादित्य नमः।' सबका भला सर्बत्त का भला।

शुभ रविवार ! भगवान सूर्यनारायण सम्पूर्ण विश्व में सर्वत्र प्रचार/प्रसार करें। सब स्वस्थ हों,सर्वत्र सुख-शान्ति हो। 'ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं स:सूर्याय नमः।' 'ऊँ आदित्याय विद्महे भास्कराय धीमहि तन्नो भानु: प्रचोदयात्।' 'ऊँ ह्रीं हंसाघृणि सूर्यादित्य नमः।' सबका भला सर्बत्त का भला।
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