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कविता घर | Kavita Ghar📝

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Sury Bhan Yadav I सूर्य भान यादव 'सूरी'(@ImSury9) 's Twitter Profile Photo

दोस्तों,
किताब मंगा ली है, बड़े दिनों से इस किताब को पढ़ने का मन था सो आज हाथ लग गई है! और एक वज़ह पढ़ने की ये भी थी कि इस किताब को लिखने वाले Gulsher Ahmad 🇮🇳✍️ भाई हैं जो कि अच्छे मित्र भी हैं,तो अब इसको निपटाते हैं और फिर उसका रीव्यू भी आपको बताते हैं।
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किताब घर | Kitab Ghar📚

दोस्तों, किताब मंगा ली है, बड़े दिनों से इस किताब को पढ़ने का मन था सो आज हाथ लग गई है! और एक वज़ह पढ़ने की ये भी थी कि इस किताब को लिखने वाले @Ahmads_voice भाई हैं जो कि अच्छे मित्र भी हैं,तो अब इसको निपटाते हैं और फिर उसका रीव्यू भी आपको बताते हैं। @kavitaaGhar @KitabGhar_
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'तुम' पूछते हो' तुम' में क्या पसंद है
'तुम' में मुझे 'तुम' पसंद हो
'तुम' में से किस 'तुम' को चुन लूं मैं
'तुम' जैसे हो , मुझको पूर्ण 'तुम' पसंद हो....
~आँचल

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पानी कि चोट भी चोट है कच्चे घड़ों से पूछ

कम उम्र में बियाही गई लड़कियों से पूछ

-अज्ञात

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फर्क है
प्रेम में होने में
और प्रेम का स्वांग रचने में

~आँचल

फर्क है प्रेम में होने में और प्रेम का स्वांग रचने में ~आँचल
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प्रेम की जड़ विश्वास ही होता है। दोनों को एक दूसरे पर पूरा विश्वास होने लगा था। दोनों को प्रेम होने लगा था। जब दो प्रेमी, प्रेम करने लगते हैं तब समाज की सारी हद व हदुद ऐसे तोड़ देते हैं जैसे एक पंक्षी का बच्चा अंडा तोड़ कर बाहर आ जाता है, सिर्फ विश्वास पर।

गुलशेर अहमद

प्रेम की जड़ विश्वास ही होता है। दोनों को एक दूसरे पर पूरा विश्वास होने लगा था। दोनों को प्रेम होने लगा था। जब दो प्रेमी, प्रेम करने लगते हैं तब समाज की सारी हद व हदुद ऐसे तोड़ देते हैं जैसे एक पंक्षी का बच्चा अंडा तोड़ कर बाहर आ जाता है, सिर्फ विश्वास पर। गुलशेर अहमद
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चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह
मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है

हसरत मोहानी

चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है हसरत मोहानी
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चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है

हसरत मोहानी

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है हसरत मोहानी
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एक मुद्दत से मिरी माँ नहीं सोई 'ताबिश'
मैं ने इक बार कहा था मुझे डर लगता है

अब्बास ताबिश

एक मुद्दत से मिरी माँ नहीं सोई 'ताबिश' मैं ने इक बार कहा था मुझे डर लगता है अब्बास ताबिश
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मां जिंदगी की एक कहानी है हम उस कहानी के पात्र और पात्र समय समय पर बदलते रहते हैं,जबकि कहानी निरन्तर जारी रहती हैं,अपने अंतिम पड़ाव तक....

रचना तिवारी

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ये मोहब्बत की कहानी नहीं मरती लेकिन
लोग किरदार निभाते हुए मर जाते हैं

अब्बास ताबिश

ये मोहब्बत की कहानी नहीं मरती लेकिन लोग किरदार निभाते हुए मर जाते हैं अब्बास ताबिश
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मौत उस की है करे जिस का ज़माना
अफ़सोस यूँ तो दुनिया में सभी आए हैं मरने के लिए

महमूद रामपुरी

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ये और बात कि वो अब यहाँ नहीं रहता
मगर ये उस का बसाया हुआ मकान तो है

अक़ील शादाब

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तेरी महफ़िल से उठाता गैर मुझ को क्या
मजाल देखता था मैं कि तू ने भी इशारा कर दिया

हसरत मोहानी

तेरी महफ़िल से उठाता गैर मुझ को क्या मजाल देखता था मैं कि तू ने भी इशारा कर दिया हसरत मोहानी
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मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख कर
उस ने दीवारों को अपनी और ऊँचा कर दिया

आदिल मंसूरी

मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख कर उस ने दीवारों को अपनी और ऊँचा कर दिया आदिल मंसूरी
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कमी न की तिरे वहशी ने ख़ाक उड़ाने में
जुनूँ का नाम उछलता रहा ज़माने में

फ़िराक़ गोरखपुरी

कमी न की तिरे वहशी ने ख़ाक उड़ाने में जुनूँ का नाम उछलता रहा ज़माने में फ़िराक़ गोरखपुरी
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इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में
ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिन से एक रात

फ़िराक़ गोरखपुरी

इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिन से एक रात फ़िराक़ गोरखपुरी
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तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम
ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम

साहिर लुधियानवी

तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम साहिर लुधियानवी
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ज़िंदगी शायद इसी का नाम है
दूरियाँ मजबूरियाँ तन्हाइयाँ

कैफ़ भोपाली

ज़िंदगी शायद इसी का नाम है दूरियाँ मजबूरियाँ तन्हाइयाँ कैफ़ भोपाली
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ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का है नाम
मुर्दा-दिल ख़ाक जिया करते हैं

इमाम बख़्श नासिख़

ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का है नाम मुर्दा-दिल ख़ाक जिया करते हैं इमाम बख़्श नासिख़
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