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Sanjeev Paliwal/संजीव पालीवाल

@sanjeevpaliwal

Author, Journalist, #Naina (नैना), #Pishach (पिशाच), #YeIshqNahinAasaan https://t.co/JoDZsRIiQA

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इश्क़ - 430

प्रेम में नहीं बनना था मुझे कभी भी
तुम्हारी पहली और आखिरी प्रेमिका!

मैंने तुमसे प्रेम करते हुए तुम्हारी सारी पूर्व प्रेमिकाओं से भी प्रेम किया !

जिसने भी तुम्हें प्यार से देखा
मैंने उससे भी प्रेम किया

प्रतिदान की कभी मुझमें चाह ही नहीं हुई
बस एक साध रही कि
एक…

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Sahitya Tak(@sahitya_tak) 's Twitter Profile Photo

जब ढह रही हों आस्थाएं
जब भटक रहे हों रास्ता
तो इस संसार में एक स्त्री पर कीजिए विश्वास
वह बताएगी सबसे छिपाकर रखा गया अनुभव...हमारे समय के चर्चित कवि का आज जन्मदिन है, इस उपलक्ष पर सुनें वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक Sanjeev Paliwal/संजीव पालीवाल से अंबुज की कविताएं.

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इश्क़ - 429

इक भले से लड़के ने
मुझको ख़त में लिक्खा है
'आप क्यों परीशां हैं?'

मैंने झुक के टेबल से
आईना उठाया है
देखती हूँ आँखों के
गिर्द स्याह हल्कें हैं

ज़र्द-ज़र्द रंगत में
हल्दियां महकती हैं
होंट उधड़े- उधड़े हैं
गेसू उलझे-उलझे हैं

और फिर इसी लम्हे
मुझको ध्यान आया है…

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इश्क़ - 428

जिसे हमदर्द होना था
वो केवल हमसफ़र निकला
जिसे होना था मंज़िल
वो फ़क़त कच्ची डगर निकला
ऐ मेरे हमनवा तुझको तो
मेरे साथ चलना था
हमें ऊँचे पहाड़ों के लिए
घर से निकलना था
अगर हम साथ चलते
दश्तो सहरा पार कर जाते
लिए छोटा सफ़ीना
बीच सागर में उतर जाते

कभी तू देखता…

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हमारे Sahitya Tak का स्टूडियो आज कल नये सिरे से संवर रहा है। पुस्तकें करीने से लगायी जा रही हैं। किताबों से अच्छा दोस्त नहीं है।

ालय

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Gee(@GayatriiM) 's Twitter Profile Photo

हम आसानी से मिले रिश्ते इस लिए मुश्किल कर देते हैं क्योंकि हमें सिखाया जाता है आसानी से मिला कुछ भी ज़्यादा दिन नहीं चलता।

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इश्क़ - 427

मैं कितनी रूखी मौत मरूंगी
जब मेरे पास नही होगा
एक भी प्रेम पत्र

तुम लिख लेते हो पीठ पर
अपनी एक एक प्रेमिका का नाम
तुम्हारी आत्मा का रंग स्लेटी है
इसलिए धुंधला जाते हैं सारे नाम

अतिरिक्त का भार
पीठ पर कब तक लादा जा सकता है और फिर तुम्हारे सहने की क्षमता जवाब…

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किसी ग़रज़ किसी मतलब से कब पुकारा था
हमें तो सिर्फ़ तुझे देखना दोबारा था
शकील आज़मी
Shakeel Azmi

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कविता - 425

होती हैं बेहद ख़तरनाक ये मज़बूत स्त्रियाँ
न होती इनमे कोई दुनियावी समझ न संस्कार
सारे कायदे कानून करके दरकिनार
न चलती इन पर समाज की कोई भी पाबंदी
ना मुश्किलों की कैद इन्हें, ना अड़चनों की बंदी
अपनी धुन में मस्त मलंग सी होती हैं।
समाज के नियमों को तोड़ने कि अपराधिनी…

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“किसी दूसरे पर अपने को इतना खर्च मत करो कि तुम्हारे पास अपना कुछ ना बचे।”

निर्मल वर्मा वाया उषा प्रियम्बदा

“किसी दूसरे पर अपने को इतना खर्च मत करो कि तुम्हारे पास अपना कुछ ना बचे।” निर्मल वर्मा वाया उषा प्रियम्बदा
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कविता - 424
अंतिम इच्छा जैसा कुछ भी नहीं है जीवन में
———————————————

जब हमें कुछ खोया-खोया-सा लगता है

और पता नहीं चलता कि

क्या खो गया है

तो वे दिन जो बीत गए

दिल की देहरी पर

दस्तक दे रहे होते हैं।

वे दिन जो बीत गए

लगता है बीते नहीं

कहीं और चले गए

बहुत सारे…

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इश्क़ - 423

उसके आने पर कतई नहीं बजता संगीत

उसके आने पर कतई नहीं बजता संगीत, नहीं आते रेख्ते के शायर उसके आने पर 'क्या हुक्म है मेरे आका', ऐसा बोलने वाला जिन्न कहीं नज़र नहीं आता उसके आने पर नहीं आते मुराकामी, पर्सी, राँझा, पाब्लो कोई गीत सुनते हुए उसे याद करने पर फुव्वारे…

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Gee(@GayatriiM) 's Twitter Profile Photo

और आज के दिन का आगाज़ हुआ था Sanjeev Paliwal/संजीव पालीवाल सर के थ्रिलर राइटिंग सेशन 'थ्रिल और रोमांच की कठिन डगर ' से।

विश्व क्राइम और थ्रिलर नोवेल पर रोचक बातें.... उनके नोवेल पिशाच और उसके सीक्वल की कहानी और एक भूत ।

तालियां, सवाल और बातें us नज़र की जिससे हम आस पास मौजूद कहानियों के नए…

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Smita Sharma(@Smita_Sharma) 's Twitter Profile Photo

19 years ago reminds FB! Such fond memories of this first trip to Kashmir to cover the Srinagar-Muzzafarabad bus service launch for Channel7 (Later IBN7) & also the first terror strike (at Tourist Reception Centre) that I reported on.Trip to Gulmarg later. Sanjeev Paliwal/संजीव पालीवाल

19 years ago reminds FB! Such fond memories of this first trip to Kashmir to cover the Srinagar-Muzzafarabad bus service launch for Channel7 (Later IBN7) & also the first terror strike (at Tourist Reception Centre) that I reported on.Trip to Gulmarg later. @sanjeevpaliwal
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इश्क़ - 422

घर से निकला ये सोचकर
कि तुमसे मिलना है
…इस एहसास की गर्माहट
इतनी थी कि उतावलेपन में भूल गया
गर्म जैकेट पहनना
यूँ ही बग़ैर जूते के
घरवाली स्लीपर में निकल आया

ये सारी बातें याद तब आई
जब तुम सामने आई
कितना ज़ोर से डाँटा था मुझको तुमने
उदास सा हो गया था मैं…

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कविता- 421
अंत में…

अब मैं कुछ कहना नहीं चाहता,

सुनना चाहता हूँ

एक समर्थ सच्ची आवाज़

यदि कहीं हो।

अन्यथा

इसके पूर्व कि

मेरा हर कथन

हर मंथन

हर अभिव्यक्ति

शून्य से टकराकर फिर वापस लौट आए,

उस अनंत मौन में समा जाना चाहता हूँ

जो मृत्यु है।

‘वह बिना कहे मर…

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Sahitya Tak(@sahitya_tak) 's Twitter Profile Photo

मेरा घर
दो दरवाज़ों को जोड़ता एक घेरा है
मेरा घर
दो दरवाज़ों के बीच है
उसमें किधर से भी झांको
तुम दरवाज़े से बाहर देख रहे होगे
तुम्हें पार का दृश्य दीख जाएगा
घर नहीं दीखेगा...सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' की पुण्यतिथि पर सुनें वरिष्ठ पत्रकार एवं Sanjeev Paliwal/संजीव पालीवाल से…

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इश्क़ - 420
'क्या हुआ बहुत ख़ामोश हों आजकल , कुछ लिख भी नहीं रहे हो ?
यार ये तुम शायर वायर लोग न ख़ामोश जंचते नहीं हो '

'तुम्हें पता है ख़ामोश रहना भी कितना खूबसूरत और कितना रोमैंटिक हो सकता है'

' कितना? ' उसने हंसते हुए पूछा और कहा सिगरेट पी सकती हूं न अगर तुम्हें इसके धुएं से…

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इश्क़- 419
चुम्बन

उसने जब चूमा पहले पहल मेरा माथा
तो आंखे बंद कर ली
मुझे नहीं मालूम कि खालिस प्रेमिका ने चूमा था मुझे
या एक शातिर प्रेमी के बहकावे में बहक गई थी एक लड़की

वैसे उतना शातिर नहीं था
जितना उस चुम्बन के बाद बना
जैसे कोई अल्पकालिक लक्ष्य पूरा हुआ हो
अब जल्द से…

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इश्क़- 418

आज रात मैं लिख सकता हूँ सबसे उदास पंक्तियाँ…

पाब्लो नेरुदा
अनुवाद- अरुण कमल
साभार- समालोचन
Sahitya Tak

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