जब तक न तुम हम से मिले थे
रंज ओ गम को हम से गिले थे
आप अब जो हो पहलू में हमारे
मानो दर्द से पुराने सिलसिले थे
#अशोक_मसरूफ़
चाय दिल के तरब और तस्कीन का बाइस हो गई है
हर मौसम मेहमान की पहली गुज़ारिश हो गई है
तरब--खुशी तस्कीन-- तसल्ली बाइस-- वज़ह
#अशोक_मसरूफ़
#अंतरराष्ट्रीय_चाय_दिवस
प्रेम का बिरवा हंसता है
कविता एक उपजती है
नज़्म की बारां होती है
धड़कन अंगड़ाई लेती है
लाख छुपाओ दुनिया से
ग़ज़लों में कसमें शर्माती है
वस्ल की रुनझुन गाती है
दुनिया पीछे रह जाती है
बारां -- बरसात
#अशोक_मसरूफ़
WAAH KYA BAAT 💕🌷💕🌷💕🌷💕🌷💕🌷💕🌷💕🌷💕🌷
यूँ बस तो हमने,हर जाम ए मय पर कहा,फिर भी तो इंतिहा हो गयी
मुस्कुरा कर गोशे लब से साक़ी ने देखा,हालत बद से बदतर…
#अशोक_मसरूफ़
परिवार क्या, वट वृक्ष था
उसकी शीतल छांव में,विकास सबका हो रहा था
बुजुर्गों का सम्मान था
सबका अपना अपना, व्यक्तिगत भी मान था
दो भाई ,और दो बहन थे
सबमें गज़ब का, सामंजस्य था
ईर्ष्या,द्वेष,विरोध,वैमनस्य का तो, जैसे अस्तित्व न था
#अशोक_मसरूफ़
#अंतर्राष्ट्रीय_परिवार_दिवस
वतन को खा रहे हैं नेता,छवि बदरंग कर डाली
भ्रमित देश की जन गण,हुई माँ भारती सवाली
ओढ़ कर धर्म का चोला,आस्था तक बेच डाली
इन्हें गद्दी से मतलब है,भाड़ में जाये ख़ुशहाली
#अशोक_मसरूफ़
वो कब की गुज़र चुकी हैं मग़र कूचा मुस्कुरा रहा है
उनकी पाज़ेब का वो नग्मा फ़ज़ा में गुनगुना रहा है
कूचा--गली फ़ज़ा--वातावरण
#अशोक_मसरूफ़
बशर की ज़िंदगी ख़ुद एक अमीक़ राज़ है
समझने को सफ़हा सफ़हा पढ़ना पड़ेगा
बशर--मनुष्य अमीक़--गहरा सफ़हा--पन्ना, पेज़
#अशोक_मसरूफ़
दर्द और सुकून का अमीरी से नहीं कोई वास्ता
भले जितना भी हो दर्द बेच सुकूं खरीद हो बूता
बूता--सामर्थ्य
#अशोक_मसरूफ़