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वह पुण्य शुभम स्वर्णिम काया
दे ओस कणों से, कदम बढ़ा
उगते शत पुष्प पंथ पर, बढ़
भू पर देती मोतो बिखेर।

जब उगी भोर के विहग वृंद
नभ पर अपने पर फैलाते
तब खोल क्षितिज के वातायन
गंधर्व नए सुर में गाते..!!

~ राकेश खंडेलवाल
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वह पुण्य शुभम स्वर्णिम काया
दे ओस कणों से, कदम बढ़ा
उगते शत पुष्प पंथ पर, बढ़ 
भू पर देती मोतो बिखेर।

जब उगी भोर के विहग  वृंद
नभ पर अपने पर फैलाते
तब खोल क्षितिज के वातायन
गंधर्व नए सुर में गाते..!!

~ राकेश खंडेलवाल
#सुहानी_भोर🌄
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🌹🐍🔱۩~🕉️~۩🔱🐍🌹
*!!★😍▬'' ''▬😍★!!*
*🏵️ 🪔 प्रातः_भस्म_आरती_दर्शन_🪔🏵️1️⃣8️⃣नवम्बर2️⃣🌐2️⃣3️⃣💫 { शनिवार } 💫*🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

सुहानी भोर वंदन साथीयों,🙏🌅🙏🌅🙏

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बीती रात, प्रात मुसकाया
बोलीं चिड़ियाँ-चूँ-चूँ !

द्वार-द्वार दे रहे दिखाई
दूध बाँटते ग्वाले !
खन-खन-खन खन लगे बोलने
गरम के प्याले !

सूरज की किरणों की छिटकी
सभी ओर है लाली !
फुलवारी में फूल बीनने
पहुँच गए हैं माली !

~ भीष्मसिंह चौहान
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बीती रात, प्रात मुसकाया
बोलीं चिड़ियाँ-चूँ-चूँ !

द्वार-द्वार दे रहे दिखाई
दूध बाँटते ग्वाले !
खन-खन-खन खन लगे बोलने
गरम #चाय के प्याले !

सूरज की किरणों की छिटकी
सभी ओर है लाली !
फुलवारी में फूल बीनने
पहुँच गए हैं माली !

~ भीष्मसिंह चौहान
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अरुणोदय की पहली लाली
इसको ही चूम निखर जाती,
फिर संध्‍या की अंतिम लाली
इस पर ही झूम बिखर जाती।

इस धरती का हर लाल खुशी से
उदय-अस्‍त अपनाता है ।
गिरिराज हिमालय से भारत का
कुछ ऐसा ही नाता है !

~ गोपाल सिंह नेपाली
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अरुणोदय की पहली लाली 
इसको ही चूम निखर जाती,
फिर संध्‍या की अंतिम लाली 
इस पर ही झूम बिखर जाती।

इस धरती का हर लाल खुशी से
 उदय-अस्‍त अपनाता है ।
गिरिराज हिमालय से भारत का 
कुछ ऐसा ही नाता है !

~ गोपाल सिंह नेपाली
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यही ॐ ऐसा परम अक्षर , चरम अविनाशी महे,
विश्वानि जग उसकी महिमा ही महिमा, प्रकृति गरिमा का कहे।

आगत विगत ओंकार कालातीत जग का मूल है,
आद्यंत हीन, अचिन्त्य कारण , सूक्ष्म और स्थूल है॥

~ डॉ मृदुल कीर्ति
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यही ॐ ऐसा परम अक्षर , चरम अविनाशी महे,
विश्वानि जग उसकी महिमा ही महिमा, प्रकृति गरिमा का कहे।

आगत विगत ओंकार कालातीत जग का मूल है,
आद्यंत हीन, अचिन्त्य कारण , सूक्ष्म और स्थूल है॥ 

~ डॉ मृदुल कीर्ति
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वर दे...वर दे...वर दे...!
शतदल अंक शोभित, वर दे!

मधुर मनोहर वीणा लहरी,
राग स्रोत की छटा है छहरी,
कण-कण आभा अरुण सुनहरी,
तान हृदय में परिमित गहरी।

उर में मेरे करुण भाव भर दे।
वर दे...वर दे...वर दे…!
शतदल अंक शोभित, वर दे..!!

~ कुलवंत सिंह
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वर दे...वर दे...वर दे...!
शतदल अंक शोभित, वर दे!

मधुर मनोहर वीणा लहरी,
राग स्रोत की छटा है छहरी,
कण-कण आभा अरुण सुनहरी,
तान हृदय में परिमित गहरी।

उर में मेरे करुण भाव भर दे।
वर दे...वर दे...वर दे…!
शतदल अंक शोभित, वर दे..!!

~ कुलवंत सिंह
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उषा सी स्वर्णोदय पर भोर
दिखा मुख कनक-किशोर;
प्रेम की प्रथम गदिरतम-कोर
दृगों में दुरा कठोर !

छा दिया यौवन-शिखर अछोर
रूप किरणों में बोर;
सजा तुमने सुख-स्वर्ण-सुहाग,
लाज-लोहित-अनुराग..!!

~ सुमित्रानंदन पंत
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उषा सी स्वर्णोदय पर भोर
दिखा मुख कनक-किशोर;
प्रेम की प्रथम गदिरतम-कोर
दृगों में दुरा कठोर !

छा दिया यौवन-शिखर अछोर
रूप किरणों में बोर;
सजा तुमने सुख-स्वर्ण-सुहाग,
लाज-लोहित-अनुराग..!!

~ सुमित्रानंदन पंत
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इस संसार में मेरे पास प्रेमजन्य यह शरीर है अलौकिक,
इसी में रोज खिलते हैं फूल और यहीं झर जाते हैं;

बहती है नीली नदियाँ और वाष्पित होती हैं,जो मिलती हैं समुद्र में।
प्रेम के वर्तुल हैं सब तरफ,
इनका कोई पहला और आखिरी सिरा नहीं..!!

~ कुमार अंबुज
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इस संसार में मेरे पास प्रेमजन्य यह शरीर है अलौकिक,
इसी में रोज खिलते हैं फूल और यहीं झर जाते हैं;

बहती है नीली नदियाँ और वाष्पित होती हैं,जो मिलती हैं समुद्र में।
प्रेम के वर्तुल हैं सब तरफ,
इनका कोई पहला और आखिरी सिरा नहीं..!!

 ~ कुमार अंबुज
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हो तिमिर कितना भी गहरा
हो रोशनी पर लाख पहरा
सूर्य को उगना पड़ेगा,
फूल को खिलना पड़ेगा !

हो समय कितना भी भारी
हमने ना उम्मीद हारी
दर्द को झुकना पड़ेगा ,
रंज को रुकना पड़ेगा..!!

~ हर्षवर्धन प्रकाश
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हो तिमिर कितना भी गहरा
हो रोशनी पर लाख पहरा
सूर्य को उगना पड़ेगा,
फूल को खिलना पड़ेगा !

हो समय कितना भी भारी
हमने ना उम्मीद हारी
दर्द को झुकना पड़ेगा ,
रंज को रुकना पड़ेगा..!!

~ हर्षवर्धन प्रकाश
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नव वसंत की रूप राशि का ऋतु उत्सव यह उपवन,
सोच रहा हूँ, जन जग से क्या सचमुच लगता शोभन !

या यह केवल प्रतिक्रिया, जो वर्गो के संस्कृत जन,
मन में जागृत करते, कुसुमित अंग, कंटकावृत मन !

~ सुमित्रानंदन पंत
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नव वसंत की रूप राशि का ऋतु उत्सव यह उपवन,
सोच रहा हूँ, जन जग से क्या सचमुच लगता शोभन !

या यह केवल प्रतिक्रिया, जो वर्गो के संस्कृत जन,
मन में जागृत करते, कुसुमित अंग, कंटकावृत मन !

~ सुमित्रानंदन पंत
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जाग जाग है प्रात हुई,
सकुची, सिमटी, शरमाई !

अष्ट अश्व रथ हो सवार
रक्तिम छटा प्राची निखार
अरुण उदय ले अनुपम आभा
किरण ज्योति दस दिशा बिखार।

सृष्टि ले रही अंगड़ाई,
जाग जाग है प्रात हुई !

~ कुलवंत सिंह
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जाग जाग है प्रात हुई,
सकुची, सिमटी, शरमाई !

अष्ट अश्व रथ हो सवार
रक्तिम छटा प्राची निखार
अरुण उदय ले अनुपम आभा
किरण ज्योति दस दिशा बिखार।

सृष्टि ले रही अंगड़ाई,
जाग जाग है प्रात हुई !

~ कुलवंत सिंह
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विजयी भव:, विजयी भव: 🥰✌️🙏

तुलसी मीठे वचन से, सुख उपजत चहूं ओर..!
जो करत भलाई जगत में, होत सुहानी भोर..!!

उपनेता प्रतिपक्ष
डॉ श्री Satish Poonia (Modi Ka Parivar) जी, जिन्दाबाद ✌️
Narendra Modi Amit Shah (Modi Ka Parivar)
Jagat Prakash Nadda (Modi Ka Parivar) Pralhad Joshi (Modi Ka Parivar)
B L Santhosh ( Modi Ka Parivar ) Er Deep Chand Samota
Abhishek Acharya Kulshrestha ( मोदी का परिवार )

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सावन में लिखी कविता अब पक चुकी है,
पोर-पोर खिलकर धरती पर उतर चुकी है।

मंत्रमुग्ध सी खड़ी निहार रही वसुंधरा,
पीत सरसों में लिपटी सकुचाई सिमटी सी धरा।

खेत खलिहान मिल रहे बांसुरी बज रही,
डाल-डाल कूक रही मिलन को मचल रही..!!

~ निशा नंदिनी 'भारतीय'
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सावन में लिखी कविता अब पक चुकी है,
पोर-पोर खिलकर धरती पर उतर चुकी है। 

मंत्रमुग्ध सी खड़ी निहार रही वसुंधरा,
पीत सरसों में लिपटी सकुचाई सिमटी सी धरा।

खेत खलिहान मिल रहे बांसुरी बज रही,
डाल-डाल कूक रही मिलन को मचल रही..!!

~ निशा नंदिनी 'भारतीय'
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वह कौन-सा तारा? सखे!

प्राची-दिशा-भू-भाल पर
लहरे तिमिर-कच-जाल पर
बन माँग का टीका सुभग
जो खिल रहा चक्रवाल पर
लघु लाल-सा; क्या कह रहा?
वह कह रहा ' भू-पुत्र मैं
कब ध्वान्‍त से हारा? सखे ! '

~ रामगोपाल रुद्र
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वह कौन-सा तारा? सखे!

प्राची-दिशा-भू-भाल पर
लहरे तिमिर-कच-जाल पर
बन माँग का टीका सुभग
जो खिल रहा चक्रवाल पर
लघु लाल-सा; क्या कह रहा?
वह कह रहा ' भू-पुत्र मैं
कब ध्वान्‍त से हारा? सखे ! '

~ रामगोपाल रुद्र 
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गाने लगे खग मधुर गान,
मुर्गों ने भी छेड़ी सुंदर तान,
स्याह रात के गालों को चूमती,
हुआ भोर का अम्बर पर भान !

रश्मिरथी पर होके सवार,
सप्त किरणें हैं बिखेरने को तैयार,
प्रकाश पुंज छाने से पहले,
सुहानी भोर हुई मचलने को तैयार !

~ राकेश कुशवाहा ‘ऋषि’
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गाने लगे खग मधुर गान,
मुर्गों ने भी छेड़ी सुंदर तान,
स्याह रात के गालों को चूमती,
हुआ भोर का अम्बर पर भान !

रश्मिरथी पर होके सवार,
सप्त किरणें हैं बिखेरने को तैयार,
प्रकाश पुंज छाने से पहले,
सुहानी भोर हुई मचलने को तैयार !

~ राकेश कुशवाहा ‘ऋषि’
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सुंदर प्रभात का स्वागत, पक्षी गण ये कर रहे
रही कोयल कूक बागों में, भौंरे ये मस्त तान गुंजा रहे।

स्वर निकले जो पक्षी-कंठ से, मधुर वे मन को हर रहे;
तू भी हे मानव, जीवन रूपी गगन का पक्षी बन जा!

भोर भई मनुज, अब तो तू उठ जा!

~ विजय कुमार सप्पत्ति
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सुंदर प्रभात का स्वागत, पक्षी गण ये कर रहे
रही कोयल कूक बागों में, भौंरे ये मस्त तान गुंजा रहे।

स्वर निकले जो पक्षी-कंठ से, मधुर वे मन को हर रहे;
तू भी हे मानव, जीवन रूपी गगन का पक्षी बन जा!

भोर भई मनुज, अब तो तू उठ जा!

~ विजय कुमार सप्पत्ति
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सुषमा का कण एक खिलाता,
राशि-राशि फूलों के वन;
शत शत झंझावात प्रलय-
बनता पल में भू-संचालन!

सच है कण का पार न पाया,
बन बिगड़े असंख्य संसार;
पर न समझना देव हमारी-
लघुता है जीवन की हार..!!

~ महादेवी वर्मा
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सुषमा का कण एक खिलाता,
राशि-राशि फूलों के वन;
शत शत झंझावात प्रलय-
बनता पल में भू-संचालन!

सच है कण का पार न पाया,
बन बिगड़े असंख्य संसार;
पर न समझना देव हमारी-
लघुता है जीवन की हार..!!

~ महादेवी वर्मा
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शीत ओढ़नी ओढ़ आई सुहानी भोर,
मृदुअधरों से धरा को चूम रही सब ओर।

☺नमस्ते,सुमंगल,सुखद स्वस्थ शुभदिन ✍️

शीत ओढ़नी ओढ़ आई सुहानी भोर,
मृदुअधरों से धरा को चूम रही सब ओर।

☺नमस्ते,सुमंगल,सुखद स्वस्थ शुभदिन ✍️
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