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स्त्री नहीं मरती
ना जीवन की वासना
वह उठाती है हर बार खरपात
पत्थर, कंकर चुनती है वह
शुरू करती है फिर एक काम
– सविता सिंह
‘वासना एक नदी का नाम है’
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मनुष्य के दिखावों ने
मनुष्यता को हरा दिया है
वरना जितनी तख़्तियों पर अब तक
पेड़ों को बचाने के लिए
नारे लिखे गये हैं
उतने पौधे लगे होते तो
सारा ब्रह्माण्ड हरा हो जाता।
-सुधीर आज़ाद
‘किसी मनुष्य का पेड़ हो जाना’
विश्व वन दिवस
#नयीबहार
‘जलता हुआ रथ’– स्वदेश दीपक
इतनी सारी भाषाएँ हैं उसके पास। फिर भी नहीं समझते एक-दूसरे की बात। ताक़त और हथियार सबसे पहले भाषा का ख़ून करते हैं। फिर इन्सान का।
Sukant Deepak
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